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बिरता रक्षा काम कठिन हे, राहिद उड़ा देत पशु कीटमनसे घलो चोरा के लेगत, तभे कृषक के जीव हताश।मंय हा नौकर मन ला भेजत, फसल ला राखंय बन रखवारचना गंहू के होरा खाथंय, हर्षित होथंय करके हानि।जब मंय हा विश्वास करे हंव, नौकर बना के राखेंव पासओमन मोला धोखा देवत, मोर जिनिस ला चोरा के खात।”निहू पदी बन कथय गरीबा -”होरा ला नौकर मन खातखाय जिनिस भर ला खावत हें, एहर कहां बड़े जक घात!चोरी के तंय दोष ला डारत, लेकिन स्वयं आस तंय चोरतंय चोराय हस परके हक ला, तब तंय चोर के मुखिया आस।मोर सलाह मान ले मितवा- सब के हक ला वापिस बांटसुम्मत के पीढ़ा पर बइठन, एकछत्र हा होय समाप्त।”धनवा कथय -”रचिस ईश्वर हा, कंगला पूंजीपति के भेदयदि मिटाय बर कोशिश करथन, तब प्रतिक्रांति के बाजत शंख।पूर्वजन्म मं पूण्य करे हन, तेकर फल ला पावत आजहमर धनदोंगानी हा बाढ़त, एकोकन नइ होत अभाव।”“ईश्वर पर तंय दोष लगा झन, ओकर बर सब एक समानअपन प्राकृतिक वस्तु ला देथय, करंय सबो झन सम उपयोग।वाद विचार धर्म धन पूंजी, जतका किसम के होवत भेदएमन ला मिलजुल के ढकलत, तंहा खतम हो जाथय भेद।”धनवा अउर गरीबा जानत, दुनिया भर के हर सिद्धान्तपर ईश्वर के नाम मं झगरत, इही वाद के कथा अगम्य।जब दिग्भ्रमित करे बर होथय, तंह ईश्वर ला लानत बीचवाजिब बहस नंदा जाथय तंह, खुद के जिद्द करत हें पूर्ण।कथय गरीबा -”अब तक राखे, अपन बहस मं छिछला तर्कमगर ठोस चर्चा अब होवय, जेकर मिलय सुखद परिणाम।तंय हा जमों वाद के ज्ञाता, जानत हस विकास के रुपतब ले तोर मं जे शंका हे, मंय मेटत रख तर्क सटीक।सुम्मत राज लाय बर सोचत, ओकर गुन योग्यता बताततंहू कान ला टेंड़िया के सुन, ताकि हृदय से कर स्वीकार।सब के भावी पूर्ण सुरक्षित, सब झन पांय अपन अधिकारना नायक ना खलनायक हे, ऊंच नीच ना धनी गरीब।जउन व्यवस्था लाने चाहत, समाजवाद ले अउ उत्कृष्टमनसे के वर्चस्व हा कायम, पर शोषण करे बर असमर्थ।”धनवा कथय -”जउन तंय बोलत, ओमां दिखत मोर नुकसानमंय समाज मं उच्च प्रतिष्ठित, नीचे गिरिहय स्तर मोर।गांव क्षेत्र मं जतका मनखे, ओमन निहू मोर ले आंयमोर ले ओमन रुतबा कंसिहंय, मोर अतिक पाहंय पद मान।”कथय गरीबा -”भ्रम पाले हस, सुम्मत राज हा सुख के राजजे वर्चस्व तोर अभि हावय, तंय पाबे अउ आसन ऊंच।वर्तमान मं बनत हेरौठा, सब झन दिहीं हृदय ले मानतोर पुत्र मनबोध जे हावय, ओकर तक भावी हा साफ।जेन व्यवस्था मं जीयत हस, ओहर घेर रखे अंधियारसाफ दृष्टि ले तथ्य ला जांचव, कटिहय भ्रम के करिया रंग।”धनवा कथय -”दिखत हे धोखा, मंय नइ मानंव तोर सलाहकाम पूर्ण तक लालच देवत, तंहने कष्ट दुहू तुम बाद।”“तंय हा खुद ला धोखा देवत, दुख ला स्वयं निमंत्रण देतजे मनसे हा रथय अजरहा, दवई ला मानत जहर समान।सुघर व्यवस्था अस्वीकारत, पर जब परिहय खूब दबावकतको ताकत ले तंय लड़बे, लेकिन सुम्मत राज के जीत।लाहो लेवइ बंद कर तंय हा, निकलत सदा दुखद परिणामघालुक रिहिस हठील तउन हा, बद्दी पाइस तन तक दीस।”उंकर मंझोत पहुंचथय कातिक, बनके उग्र देखावत क्रोधधनवा के छट्ठी ला गिनथय, सातो पुरखा पानी डार।कहिथय -”मोरेच बाप तिजऊ हा, खटिस तुम्हर घर मर के भूखबिपत झेलना मुस्कुल होगे, करिस आत्महत्या खुद हाथ।मंय हा सेवा तोर करे हंव, पर फल मं अभाव ला पायवाकइ तंय गरकट्टा घालुक, मोला देस मरत तकलीफ।तोर नौकरी छोड़ डरे हंव, तोर ले अब लेहंव प्रतिशोधखुंटीउजार तोर करिहंव तब, मोर हृदय ठंडक संतोष।”धनवा हा बोकबोक देखत अउ, कथय गरीबा ला भर क्लान्त-“सुम्मत राज गांव ले बाहिर, मगर देखात रुप ला रौद्र।तोर हाल ला मंय जाने बर, इहां आय हंव समझ मितानपर कातिक ला खुद हा उचका, मोर हइन्ता ला करवात।तोला जउन जिनिस आवश्यक, मोर पास तंय खत्तम मांगमगर विरोध मोर झन होवय, एकर याद सदा बर राख।”धनवा हा लालच देवत हे, ताकि पक्ष होवय मजबूतमगर गरीबा हा कुछ छरकत, ताकि पूर्ण होवय उद्देश्य।कथय गरीबा -”जिनिस मांगहूं, लेकिन ओकर बर कुछ टेमतोर मोर सब भेद मेटावय, एकर किरिया पहिली खान।”धनसहाय हा उहां ले हटथय मन मं छुपे हे गुस्सा।कातिक के तेवर ठंडा तंह बोलत हवय गरीबा।“मुंह फरका गारी बक देना, ए नइ आय क्रांति के राहशांत बुद्धि – मुंह ला चुप राखव, पहुंच सकत तब निज गंतव्य।जेकर तिर नइ शक्ति लड़े बर, जेन निकम्मा कायर जीवअपन दोष ला चुप दोबे बर, आंख लालकर क्रोध देखात।असली भेद आज फोरत हंव, लेखक लिखिन गलत इतिहास-देशभक्त मन उग्र लड़ंका, जोश मं उबलय ऊंकर खून।गोरा मन हा देश ला छोड़ंय, दीन क्रांतिकारी मन धौंसबम ला पटकिन जीवन ला लिन, तभे देश हो सकिस अजाद।
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