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हम इस लमहे को समझने की कोशिश करते हैं, यह बात
कि मौत से हम मुतमईन हैं, अकेलेपन से भी ।
मेरी सहेली धूल पर उँगली से गोले का निशान बनाती है, तितली हिलती-डुलती नहीं.
वह हमेशा कोई पूरी चीज़ बनाना चाहती है, ख़ूबसूरत सा कुछ, एक तस्वीर
जो अपनी ज़िन्दगी से परे की है. हो, हम बेहद ख़ामोश हैं. यह बैठना, कुछ भी न बोलना, चारों ओर शान्ति ।
एक समूची तस्वीर, सड़क पर अन्धेरा छाता हुआ, हवा
ठण्डी होती हुई, यहाँ-वहाँ चमकती चट्टानें –
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