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मुझे अपने स्कूलों की याद है कतरा-कतरापलेम अपोक्पी, मेरी माँ हैं, जिन्होंने मुझे डरना सिखायाजन्म दिया,जहाँ साध्वियाँ सिर्फ़ विश्वास करती थींऔर मैं एक ऐसा आदमी हूँ, जिसे दस साल पहले तकलिखित शब्दों घर छोड़कर कहीं और सज़ा की ताक़त में जाना ज़रा भी पसन्द नहीं था ।अब ये पहाड़ियाँ मुझपर उग आई हैं
सब बातों के बीच वहाँ एक लड़का थामाँ ! माँ !जिसने अपने पिता के नक़ली हस्ताक्षर बना लिए थेमैं अब भी तुम्हारा वही बेहद शर्मीला बेटा हूँगणित के टेस्ट को चकमा देने के लिएजो बेहद पेटू था,और पूरा दिन द्वितीय विश्वयुद्ध तुम्हारा कोठार ख़ाली करने के एक क़ब्रिस्तान में बिताया थाबादसमाधि-लेखों और फूलों के बीच सोते हुए जिसके कई दाँत गिर गए थे
ग्लैसगो से आने वालॊ किताबों के सन्त्रास मेंमैं अब भी स्वप्निल आँखों वाला तुम्हारा वही बच्चा हूँउसने जिसने अपने पिता स्कूली दिनों में, रोज़ ही किसी न किसी से कोई नया रोमांस करते हुएतुम्हारे जीवन में मुश्किलें पैदा की जेब थींजो निक्कर पहनता था, लेकिन इतना मनचला थाकि हर मनपसन्द लड़की से रोमांस करना शुरू कर देता था। माँ !तुमने अपने बच्चों को यह समझाया - बताया थाकि समय और पैसे पेड़ों पर नहीं उगते, लेकिन मैं कभी भी उनके साथ रहना नहीं सीख पाया ।माँ ! ऐसा नहीं है कि मैं भूल गया हूँ कितुम मेरे लिए क्या मायने रखती होहालाँकि मैं सब कुछ नोट छोड़कर चला आया था और सिक्के चुराएदूसरों की स्मृति में ख़ुद को बेहद बौना कर लिया था मैंने । मैं जानता हूँ कि तुम भी दूसरी माँओं की तरहदिन-रात हाड़तोड़ काम करती थीं अपनी आज़ाद बहुओं,उम्रदराज़ पति और पहुँच गया वयस्कों अविवाहित पुत्रों के लिए ।हमारे लिए हमेशा चिन्तित रहा करती थींतुम्हारे होठों पर कभी एक मुस्कान तक नहीं आई,अब तुम्हारे चेहरे पर झुर्रियाँ छा गई हैं और तुम्हारे बालों में बर्फ़ सी सफ़ेदी झाँकने लगी हैन।  हर रोज़ की कहानियोंतरह तुम आज भी उठी होंगीसुबह-सवेरे, भोर में, तड़के, आदमख़ोरों गिरजे की घण्टियाँ बजने से पहले हीतुमने सारा घर साफ़ किया होगा, फिर तुम नहाई होंगीऔर मीठी कहानियों घर में शेष बचे सभी लोगों के रहस्यमय चक्र लिए खाना बनाया होगा ।हर शाम मैं तुम्हें देखता हूँ तुम लौटती हो बाज़ार से,सिर पर भारी टोकरियों का बोझ लेकर । माँ ! मेरे मन में सवाल उठता है —क्या अब तुम्हें हमेशा हमेशा के लिए सख़्त मेहनत से छुटकारा नहीं पा लेना चाहिए ? मैं उदास हूँ, माँ पलेम !मैं तुमसे विरासत में कुछ ले नहीं पायान स्थिर जीवन जीने का तुम्हारा तरीका और न खाना पकाने का तुम्हारा कौशल ।मुझे माफ़ कर दो, माँ !मैं तुम्हारे वे सपने पूरे नहीं कर पायाकि तुम बिताना चाहती थीं अपने बचे हुए दिन शान्ति से। मैं एक छोटा आदमी निकलाजिसके सपने छोटे - छोटे हैं, और जो अपने उन छोटे - छोटे सपनों के साथ अपना छोटा सा जीवन जी रहा है ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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