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आज मधुर विशाद की घिर करुण आई यामिनी <br>
बरस सुधि के इन्दु से छिट्की पुलक की चांदनी<br>
उमड, आई री, द्रगों दृगों में <br>
सजनि, कालिन्दी निराली!<br><br>
रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तरावली,<br>
जाग सुक-पिक ने अचानक मदिर पन्चम तान ली;<br>
बह चली निशःवास की म्रदुमृदु<br>
बात मलय-निकुन्ज वाली!<br><br>
सजल रोमो में बिछी है पांवडे मधुस्नात से,<br>
आज जीवन के निमिष भी दूत हैं अग्यात अज्ञात से<br>
क्या न अब प्रिय की बजेगी <br>
मुरली मधुराग वाली?<br><br>
मैं बनी मधुमास आली!
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