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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग टोडी
<poem>
ऊधो, होहु इहां तैं न्यारे।
 
तुमहिं देखि तन अधिक तपत है, अरु नयननि के तारे॥
 
अपनो जोग सैंति किन राखत, इहां देत कत डारे।
 
तुम्हरे हित अपने मुख करिहैं, मीठे तें नहिं खारे॥
 
हम गिरिधर के नाम गुननि बस, और काहि उर धारे।
 
सूरदास, हम सबै एकमत तुम सब खोटे कारे॥
</poem>
 भावार्थ :- `तुमहि.....तारे,' तुम जले पर और जलाते हो, एक तो कृष्ण की विरहाग्नि से
हम योंही जली जाती है उस पर तुम योग की दाहक बातें सुना रहे हो। आंखें योंही जल
रही है। हमारे जिन नेत्रों में प्यारे कृष्ण बस रहे हैं, उनमें तुम निर्गुण निराकार
ब्रह्म बसाने को कह रहे हो।
 
`अपनो....डारें', तुम्हारा योग-शास्त्र तो एक बहुमूल्य वस्तु है, उसे हम जैसी गंवार
गोपियों के आगे क्यों व्यर्थ बरबाद कर रहे हो।
 
`तुम्हारे....खारे,' तुम्हारे लिए हम अपने मीठे को खारा नहीं कर सकतीं, प्यारे मोहन
की मीठी याद को छोड़कर तुम्हारे नीरस निर्गुण ज्ञान का आस्वादन भला हम क्यों करने
चलीं ?
 
शब्दार्थ :- न्यारे होहु = चले जाओ। सैंति = भली-भांति संचित करके।खोटे = बुरे।
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