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<poem>
उसका अपना ही करिश्मा है फ़सूँ है, यूँ है
 
यूँ तो कहने को सभी कहते है, यूँ है, यूँ है
 
जैसे कोई दर-ए-दिल हो पर सिताज़ा कब से
 
एक साया न दरू है न बरू है, यूँ है,
 
तुमने देखी ही नहीं दश्त-ए-वफा की तस्वीर
 
चले हर खार पे कि कतरा-ए-खूँ है, यूँ है
 
अब तुम आए हो मेरी जान तमाशा करने
 
अब तो दरिया में तलातुम न सकूँ है, यूँ है
 
नासेहा तुझको खबर क्या कि मुहब्बत क्या है
 
रोज़ आ जाता है समझाता है, यूँ है, यूँ है
 
शाइरी ताज़ा ज़मानो की है मामर 'फ़राज़'
 
ये भी एक सिलसिला कुन्फ़े क्यूँ है, यूँ है, यूँ है
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