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"अन्तिम दिनों में/ प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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वे रूप धरते हैं तरह-तरह के | वे रूप धरते हैं तरह-तरह के | ||
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उनको पहचानते हैं सब | उनको पहचानते हैं सब | ||
सब करते हैं उनसे घृणा | सब करते हैं उनसे घृणा | ||
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फिर भी उनकी ही प्रजाति | फिर भी उनकी ही प्रजाति | ||
सबसे ज्यादा फलती-फूलती हैं | सबसे ज्यादा फलती-फूलती हैं | ||
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अन्तिम दिनों में | अन्तिम दिनों में | ||
वे दीमक की तरह लग जाते हैं | वे दीमक की तरह लग जाते हैं | ||
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22:44, 13 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
उनके पास
कमज़ोर नसों की सूची होती है
उनकी ही भाषा में
सारे धर्मग्रन्थों का अनुवाद होता है
विचारों के जीवाश्मों को खोद-खोदकर
वे अपने लिए खोह बनाते हैं
अन्तिम दिनों में
वे सबसे ज़्यादा सक्रिय होतें हैं
वे रूप धरते हैं तरह-तरह के
प्रेमिकाओं की तरह हृदय में दाखिल होते हैं
अन्तिम दिनों में
उनको पहचानते हैं सब
सब करते हैं उनसे घृणा
चर्चाएँ गर्म होतीं हैं उनके खिलाफ
फिर भी उनकी ही प्रजाति
सबसे ज्यादा फलती-फूलती हैं
अन्तिम दिनों में
वे दीमक की तरह लग जाते हैं
अपनी भाषा की जड़ों में ।