{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=प्रदीप मिश्र|संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>'''अन्तिम दिनों में'''
उनके पास
कमजोर कमज़ोर नसों की सूची होती है
उनकी ही भाषा में
सारे धर्मग्रन्थों का अनुवाद होता है
वे अपने लिए खोह बनाते हैं
अन्तिम दिनों में
वे सबसे ज्यादा ज़्यादा सक्रिय होतें हैं
वे रूप धरते हैं तरह-तरह के
उनको पहचानते हैं सब
सब करते हैं उनसे घृणा
चर्चाएं चर्चाएँ गर्म होतीं हैं उनके खिलाफ
फिर भी उनकी ही प्रजाति
सबसे ज्यादा फलती-फूलती हैं
अन्तिम दिनों में
वे दीमक की तरह लग जाते हैं
अपनी भाषा की जड़ों में। में ।
</poem>