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"सुकुमार राय" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: मकड़ी और मक्खी] <poem> (मकडी) धागा बुना अंगना में मैंने जाल बुना कल …)
 
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{{KKGlobal}}
<poem>  (मकडी)
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{{KKAnooditRachnakaar
धागा  बुना  अंगना में मैंने
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|चित्र=
जाल बुना कल रात मैंने
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|नाम=सुकुमार राय
        जाला झाड साफ़ किया है वास *
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|उपनाम=
आओ ना मक्खी मेरे घर
+
|जन्म=
आराम मिलेगा बैठोगे जब
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|मृत्यु=
        फर्श बिछाया देखो एकदम खास *
+
|जन्मस्थान=
        (मक्खी)
+
|कृतियाँ=
छोड़ छोड़ तू और मत कहना
+
|विविध=
बातों से तेरा मन गले ना
+
|जीवनी=[[सुकुमार राय / परिचय]]
        काम तुम्हारा क्या है मैं सब जानूं*
+
}}
फंस गया गर जाल के अन्दर
+
कभी सुना है वो लौटा फिर
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        बाप रे ! वहाँ घुसने की बात ना मानूं *
+
          (मकड़ी)
+
हवादार है जाल का झूला
+
चारों ओर  खिडकी है खुला
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          नींद आये खूब आँखे हो जाए बंद *
+
आओ ना यहाँ हाथ पाँव धोकर
+
सो जाओ अपने पर मोड़कर
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          भीं-भीं-भीं उड़ना हो जाए बंद *
+
            (मक्खी)
+
ना चाहूँ मैं कोई झूला
+
बातों में आकर गर स्वयं को भूला
+
          जानूं है प्राण का बड़ा ख़तरा *
+
तेरे घर नींद गर आयी
+
नींद से ना कोई जग पाए
+
        सर्वनाशा है वो नींद का कतरा *
+
            (मकड़ी)
+
वृथा तू क्यों विचारे इतना
+
इस कमरे में आकर देख ना
+
        खान-पान से भरा है ये घरबार *
+
आ फ़टाफ़ट डाल ले मूंह में
+
नाच-गाकर रह इस घर में
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        चिंता छोड़ रह जाओ बादशाह  की तरह *
+
              (मक्खी)
+
लालच बुरी बला है जानूं
+
लोभी नहीं हूँ ,पर तुझे मैं जानूं
+
          झूठा लालच मुझे मत दिखा रे  *
+
करें क्या वो खाना खाकर
+
उस भोजन को दूर से नमस्कार
+
          मुझे यहाँ भोजन नही करना रे *
+
              (मकडी)
+
तेरा ये सुन्दर काला बदन
+
रूप तुम्हारा सुन्दर सघन
+
          सर पर मुकुट आश्चर्य से निहारे  *
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नैनों में हजार माणिक जले
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इस इन्द्रधनुष पंख तले
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          छे पाँव से आओ ना धीरे-धीरे *
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            (मक्खी)
+
मन मेरा नाचे स्फूर्ति से
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सोंचू जाऊं एक बार धीरे से
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            गया-गया-गया मैं बाप रे!ये क्या पहेली *
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ओ भाई तुम मुझे माफ़ करना
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जाल बुना तुमने मुझे नहीं फसना
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          फंस जाऊं गर काम नआये कोई सहेली *
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              (उपसंहार)
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दुष्टों की बातें होती चाशनी में डुबोया
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आओ गर बातों में समझो जाल में फंसाया
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          दशा तुम्हारा होगा ऐसा ही सुन लो *
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बातों में आकर ही लोग मर जाए
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मकड़जीवी धीरे से समाये
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          दूर से करो प्रणाम और फिर हट लो *
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* [मकड़ी और मक्खी / सुकुमार राय]]
कवि सुकुमार राय द्वारा रचित काव्य का अनुवाद
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* [[ / सुकुमार राय]]
</poem>
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11:29, 25 दिसम्बर 2010 का अवतरण

सुकुमार राय
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