भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बौनों के देश में / उमेश चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमेश चौहान }} {{KKCatKavita‎}} <poem> बौने क़द के लोगों में एक …)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:41, 2 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

बौने क़द के लोगों में
एक अकेला था वह
लंबा-सा इनसान
दूर देश से आया था ।
 
हुए इकट्ठे सारे बौने और तय किया
काटो इसके पैर
कि छोटा हो बेचारा
गए पास राजा के बोले
इसके पैर बहुत लंबे हैं
चाल बहुत ही तेज़ कि
छीने राज्य तुम्हारा ।
 
राजा बोला बहुत सही है
बड़े पते की बात कही है
मैं हूँ राजा इन बौनों का
पैर काटकर इस लंबे के बौना कर दो
और नहीं तो इसे देश से बाहर कर दो ।
 
फिर क्या था
आरियाँ निकालीं
पकड़ीं टाँगें परदेसी की
परदेसी भी बड़ा गज़ब का
झटक रहा था, पटक रहा था
सहज नहीं था पैर काटना
आरी में भी धार नहीं थी ।
 
कट न सके जब पैर तो सोचा
देश निकालो
घेरो इसको सभी तरफ़ से
लेकिन कुछ ऐसी भी विधि थी
घेर न पाए ।
 
लिये खरोंचें पूरे तन पर
वह लंबा इनसान
न्याय की प्रत्याशा में
यहाँ-वहाँ तक रहा दौड़ता
लंबे छल के उन बौनों से
बच जाए बस इस आशा में
शहर-बदर की अभिलाषा में ।