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"दूर होने दो अँधेरा / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
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साज़ ऐसा दो | साज़ ऐसा दो | ||
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अंदाज़ ऐसा दो | अंदाज़ ऐसा दो | ||
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− | आग बोओ | + | और काटो |
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हम सँवारेंगे | हम सँवारेंगे | ||
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हरे पन्ने | हरे पन्ने | ||
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गुलाबी धूप के अक्षर | गुलाबी धूप के अक्षर | ||
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दूर तक | दूर तक | ||
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गूँजे दिशाओं में | गूँजे दिशाओं में | ||
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पसीने के उभरते स्वर | पसीने के उभरते स्वर | ||
− | + | कल खिलेगा | |
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− | और तोड़ो पर्वतों को | + | </poem> |
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− | चूर होने | + |
13:04, 4 जनवरी 2011 का अवतरण
दूर
होने दो अँधेरा
अब घरों से
दूर होने दो ।
और ताज़ा कर सके
माहौल को जो
साज़ ऐसा दो
बाँध ले
गिरते समय के मूल्य को
अंदाज़ ऐसा दो
आग बोओ
और काटो
रोशनी भरपूर होने दो ।।
हम सँवारेंगे
हरे पन्ने
गुलाबी धूप के अक्षर
दूर तक
गूँजे दिशाओं में
पसीने के उभरते स्वर
कल खिलेगा
और तोड़ो पर्वतों को
चूर होने दो ।।