भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वेलेन्टाइन डे / सिद्धेश्वर सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिद्धेश्वर सिंह |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> शोध के लायक …)
(कोई अंतर नहीं)

20:44, 5 जनवरी 2011 का अवतरण

शोध के लायक है
एक अकेले दिन का इतिहास
और प्रतिशोध की संभावना से परिपूर्ण भूगोल
कैसा - किस तरह का हो
इस दिवस का नागरिकशास्त्र..
सब चुप्प
सब चौकन्ने
सब चकित
इस शामिलबाजे में
भीतर ही भीतर बज रहा है कोई राग ।

आज वेलेन्टाईन डे पर
अपने घोंसले से दूर स्मॄतियों में सहेज रहा हूँ
अपना चौका
अपने बासन
रोटी की गमक
तरकारी की तरावट
चूल्हे पर दिपदिप करती आग ।

और उसे.. उसे
जिसने आटे की तरह
गूथ दिया है खुद को चुपचाप

सुना है इसी दिन

पता चलता है संस्कॄति के पैमाने का ताप.

मैं मूढ़ - मैं मूरख क्या जानूँ

प्यार है किस चिड़िया का नाम

आज वेलेन्टाईन डे पर

अपने घोंसले से दूर

तुम्हें याद करते हुए

क्या कर रहा हूँ - क्या पुण्य - क्या पाप !