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+ | आके आँसू दृग-युगल में थें धरा को भिगोते ।। | ||
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+ | प्रातः वाली सुपवन इसी काल वातायनों से ।।१।। | ||
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21:29, 15 जनवरी 2011 का अवतरण
प्रिय प्रवास
रचनाकार | अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |
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प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | खंडकाव्य |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
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पवन - दूतिका
बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली ।
आके आँसू दृग-युगल में थें धरा को भिगोते ।।
आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गंध को ले ।
प्रातः वाली सुपवन इसी काल वातायनों से ।।१।।