भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आओ हे नवीन युग / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल }} {{KKCatKavita}} <poem> , yah testing hai shigra hi rachana …) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | , | + | आओ हे नवीन युग |
+ | आओ हे सखा शांति के | ||
+ | चलकर झरे हुए पत्रों पर | ||
+ | गत अशांति के । | ||
+ | आओ बर्बरता के शव पर | ||
+ | अपने पग धर, | ||
+ | खिलो हँसी बनकर | ||
+ | पीड़ित उर के अधरों पर । | ||
+ | करो मुक्त लक्ष्मी को | ||
+ | धनियों के बंधन से | ||
+ | खोलो सबके लिए द्वार | ||
+ | सुख के नंदन के । | ||
+ | दो भूखों को अन्न और मृतकों को जीवन | ||
+ | करो निराशों में आशा के बल का वितरण । | ||
+ | सिर नीचा कर चलता है जो, | ||
+ | जो अपने को पशुओं में गिनता है | ||
+ | रहता हाथ जोड़ जो उसे गर्व दो तुम | ||
+ | सिर ऊँचा कर चलने का | ||
+ | ईश्वर की दुनिया में भेद न होए कोई | ||
+ | रहें स्वर्ग में सभी, नरक सुख सहे न कोई । | ||
</poem> | </poem> |
22:16, 21 जनवरी 2011 का अवतरण
आओ हे नवीन युग
आओ हे सखा शांति के
चलकर झरे हुए पत्रों पर
गत अशांति के ।
आओ बर्बरता के शव पर
अपने पग धर,
खिलो हँसी बनकर
पीड़ित उर के अधरों पर ।
करो मुक्त लक्ष्मी को
धनियों के बंधन से
खोलो सबके लिए द्वार
सुख के नंदन के ।
दो भूखों को अन्न और मृतकों को जीवन
करो निराशों में आशा के बल का वितरण ।
सिर नीचा कर चलता है जो,
जो अपने को पशुओं में गिनता है
रहता हाथ जोड़ जो उसे गर्व दो तुम
सिर ऊँचा कर चलने का
ईश्वर की दुनिया में भेद न होए कोई
रहें स्वर्ग में सभी, नरक सुख सहे न कोई ।