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"मिलन / बरीस पास्तेरनाक" के अवतरणों में अंतर

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22:19, 26 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

बर्फ़ जब ढक लेती है सड़कों को
और घनी छा जाती है छतों पर
मैं बाहर निकलूँगा,
अपने पाँवों को सीधा करने के लिए,
और देखूँगा तुम्हें खड़ी
दहलीज पर अकेली ।

शिशिर वाला कोट पहने
बिना हैट और बर्फ़ पर चलने वाले जूतों के
तुम मुट्ठी भर बर्फ़ चबाती हो‍ओगी
प्रयास करती हुई शांत रहने का ।

दरख़्त और परिधियाँ
अँधियारे क्षितिज पर अदृश्य हुए होंगे
और तुम तुषार-पात के बीच
अकेली खड़ी होगी नुक्कड़ पर ।

सर पर बँधे रुमाल से
जल बिन्दु रिस-रिस के ढुलक रहे होंगे
तुम्हारी आस्तीनों पर
और झलमल कर उठे होंगे
तुम्हारे गेसुओं में शबनम की तरह ।

चमकते गेसुओं के गुच्छे
दमकाते रहे होंगे तुम्हारे चेहरे को
रुमाल को, तुम्हारी प्रतिमा को
और तुम्हारे मलिन कोट को ।

बर्फ़ भीग गई होगी तुम्हारी भौहों पर
तुम्हारी आँखों में पीड़ा होगी,
तुम्हारी तस्वीर मेरे हृदय-पट पर
खोद दी गई है छेनी से
तेजाब में डुबो कर ।

तुम्हारी आकृति के विनय
अंकित रहेंगे मेरे मानस पर सदा
तब कठोर हृदय वाले संसार की बात
मेरा धंधा नहीं होगी ।

यही कारण है कि तुषार-पात की रात
दूनी हो जाती है अपने में
और मैं कोई सीमान्त रेखा नहीं खींच सकता
अपने और तुम्हारे बीच ।

लेकिन हम कौन हैं ? कहाँ से आए हैं ?
जब इन सारे वर्षों में
कुछ नहीं बच रहता
काहिलों की गप्प के सिवा
और हम कहीं नहीं होते इस दुनिया में ।


अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह