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22:40, 29 दिसम्बर 2007 के समय का अवतरण


मैंने कहा जाओ

मेरी जेब के बचे -खुचे पैसो

बाहर निकलो

कोई रास्ता खोजो जाने का

पसीने के छेदों से

या मेरी आत्मा में से ही बाहर निकलो

तुम्हें मैंने काफ़ी मेहनत से कमाया था

जाओ ख़र्च हो जाओ

मेरी मेहनत भी इसी तरह

होती रही है ख़र्च


(1991 में रचित)