भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक चिकना मौन / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=आँगन के पार द्वार / अज्ञेय }} {{KKCatKavita}}…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:13, 2 फ़रवरी 2011 का अवतरण
एक चिकना मौन
जिस में मुखर-तपती वासनाएँ
दाह खोती
लीन होती हैं ।
उसी में रवहीन
तेरा
गूँजता है छंद :
ऋत विज्ञप्त होता है ।
एक काले घोल की-सी रात
जिस में रूप, प्रतिमा, मूर्त्तियाँ
सब पिघल जातीं
ओट पातीं
एक स्वप्नातीत, रूपातीत
पुनीत
गहरी नींद की ।
उसी में से तू
बढ़ा कर हाथ
सहसा खींच लेता-
गले मिलता है ।