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जामा-मस्जिद के पास एक औरत चीख़ रही है | जामा-मस्जिद के पास एक औरत चीख़ रही है | ||
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एक मर्द की गद्दारी पर, | एक मर्द की गद्दारी पर, | ||
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मर्द लाचार-सा मगर साफ़-साफ़ दुराचारी-सा | मर्द लाचार-सा मगर साफ़-साफ़ दुराचारी-सा | ||
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दिखता चुप है | दिखता चुप है | ||
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वह जब-जब कुछ कहता है, चीख़ती है औरत | वह जब-जब कुछ कहता है, चीख़ती है औरत | ||
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सुनती है जामा-मस्जिद एक औरत की चीख़ | सुनती है जामा-मस्जिद एक औरत की चीख़ | ||
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दूर से आती हुई अजान की तरह | दूर से आती हुई अजान की तरह | ||
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अंधेरा मिटाती, किवाड़-सी चरमराती | अंधेरा मिटाती, किवाड़-सी चरमराती | ||
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फिर जामा-मस्जिद से एक अजान आती है | फिर जामा-मस्जिद से एक अजान आती है | ||
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मर्दों की जिद्दी और हठीली आवाज़ | मर्दों की जिद्दी और हठीली आवाज़ | ||
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जिसे वह सुनती है चीख़ती है अजान के वक़्त | जिसे वह सुनती है चीख़ती है अजान के वक़्त | ||
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आँसू पीकर तोड़ती है रोजा | आँसू पीकर तोड़ती है रोजा | ||
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जामा-मस्जिद की सीढि़यों पर लेटी है वह | जामा-मस्जिद की सीढि़यों पर लेटी है वह | ||
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मीनारों से भी ऊँची और गुम्बदों से भी भारी | मीनारों से भी ऊँची और गुम्बदों से भी भारी | ||
− | + | चीख़ की तरह । | |
− | चीख़ की | + | </poem> |
17:01, 5 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
जामा-मस्जिद के पास एक औरत चीख़ रही है
एक मर्द की गद्दारी पर,
मर्द लाचार-सा मगर साफ़-साफ़ दुराचारी-सा
दिखता चुप है
वह जब-जब कुछ कहता है, चीख़ती है औरत
सुनती है जामा-मस्जिद एक औरत की चीख़
दूर से आती हुई अजान की तरह
अंधेरा मिटाती, किवाड़-सी चरमराती
फिर जामा-मस्जिद से एक अजान आती है
मर्दों की जिद्दी और हठीली आवाज़
जिसे वह सुनती है चीख़ती है अजान के वक़्त
आँसू पीकर तोड़ती है रोजा
जामा-मस्जिद की सीढि़यों पर लेटी है वह
मीनारों से भी ऊँची और गुम्बदों से भी भारी
चीख़ की तरह ।