भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"धोखे खाने हैं / योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ }} {{KKCatNavgeet}} <poem> नित्य आत्मह…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:41, 11 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
नित्य आत्महत्या करती हैं
इच्छाएँ सारी !
आय अठन्नी, खर्च रुपैया
इस महंगाई में
बड़की की शादी होनी है
इसी जुलाई में
कैसे होगा? सोच रहा है
गुमसुम बनवारी
बिन फ़ोटो के फ़्रेम सरीखा
यहाँ दिखावा है
अपनेपन का विज्ञापन-सा
छलावा है
अपने मतलब की ख़ातिर नित
नई कलाकारी !
हर पल अपनों से ही सौ-सौ
धोखे खाने हैं
अंत समय तक फिर भी सारे
फ़र्ज़ निभाने हैं
एक अकेला मुखिया घर की
सौ ज़िम्मेदारी !