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"जीने की दरकार रहे / विनय मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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20:56, 25 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
जीने की दरकार रहे
गर दुनिया में प्यार रहे
घर के सपने देती है
ये टूटी दीवार रहे
बाज़ारों में बिक जाना
उनका कारोबार रहे
सारा आलम पतझड़ का
अब किस जगह बहार रहे
बैठ लोग अलावों पर
आँसू बन अंगार रहे
पर्दे गिरते हैं मानो
कुछ ना आख़िरकार रहे