भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यातना / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} रचनाकारः अरुण कमल Category:कविताएँ Category:अरुण कमल ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ समय क...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
रचनाकारः [[अरुण कमल]]
+
{{KKRachna
[[Category:कविताएँ]]
+
|रचनाकार=अरूण कमल
[[Category:अरुण कमल]]
+
}}
  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
 
  
  

12:23, 25 अप्रैल 2008 का अवतरण


समय के साथ-साथ बदलता है

यातना देने का तरीका

बदलता है आदमी को नष्ट कर देने का

रस्मो-रिवाज


बिना बेड़ियों के

बिना गैस चैम्बर में डाले हुए

बिना इलेक्ट्रिक शाक के

बर्फ़ पर सुलाए बिना


बहुत ही शालीन ढंग से

किसी को यातना देनी हो

तो उसे खाने को सब कुछ दो

कपड़ा दो तेल दो साबुन दो

एक-एक चीज़ दो

और काट दो दुनिया से

अकेला बन्द कर दो बहुत बड़े मकान में

बन्द कर दो अकेला


और धीरे-धीरे वह नष्ट हो जाएगा

भीतर ही भीतर पानी की तेज़ धार

काट देगी सारी मिट्टी

और एक दिन वह तट

जहाँ कभी लगता था मेला

गिलहरी के बैठने-भर से

ढह जाएगा ।