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"तीन बन्दर / प्रतिभा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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बचते-भागते आ बैठे ड्राइँग रूम के अन्दर,
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ये तीन बन्दर !
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बैठे रहेंगे -
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निश्चिन्त,आदर्श,परम अहिंसावादी,
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यथार्थ से आँखें मूँदे ,महात्मा बने,
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कि हम नहीं ऐसे
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सारी दुनिया रहे चाहे जैसे !
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बुराइयों से आँखें मूँद  ,
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एकदम चुप रहो,
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बंद रखो कान ,
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जो रहा है होने दो ,
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हमें क्या ?
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फैलती रहें अनीतियाँ ,अमर बेल की तरह
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छल्ले फँसाती शाखा-प्रशाखाओं में बिना किसी अवरोध के !
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सच के कँटीले रास्ते से भाग ,
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यहाँ बैठे रहें  ,अंध, मूक,बधिर बने,
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गज़ब का संयम ओढ़े ,
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सबसे तटस्थ,निर्लिप्त !
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इस कमरे के अंदर ;
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परम संत बने आत्ममुग्ध ,
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ये तीन बंदर !
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युग की महागाथा मे
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लिखे होंगे सबसे ऊपर इनके नाम ,
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हथियार छोड़ भागनेवालों में !
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क्योंकि इस देश और इस काल में
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सर्वग्रासी मि्थ्यादर्शों के बीच ,
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परम संतोष से
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जिये जा रहे हैं
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आँख,कान और मुँह बंद कर ,
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ये तीन बंदर !
  
 
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08:03, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

आँख,कान और मुँह बंद किये,
बचते-भागते आ बैठे ड्राइँग रूम के अन्दर,
ये तीन बन्दर !


बैठे रहेंगे -
निश्चिन्त,आदर्श,परम अहिंसावादी,
यथार्थ से आँखें मूँदे ,महात्मा बने,
कि हम नहीं ऐसे
सारी दुनिया रहे चाहे जैसे !
बुराइयों से आँखें मूँद ,
एकदम चुप रहो,
बंद रखो कान ,
जो रहा है होने दो ,
हमें क्या ?


फैलती रहें अनीतियाँ ,अमर बेल की तरह
छल्ले फँसाती शाखा-प्रशाखाओं में बिना किसी अवरोध के !
 सच के कँटीले रास्ते से भाग ,
यहाँ बैठे रहें ,अंध, मूक,बधिर बने,
गज़ब का संयम ओढ़े ,
सबसे तटस्थ,निर्लिप्त !
इस कमरे के अंदर ;
परम संत बने आत्ममुग्ध ,
ये तीन बंदर !


युग की महागाथा मे
 लिखे होंगे सबसे ऊपर इनके नाम ,
हथियार छोड़ भागनेवालों में !
क्योंकि इस देश और इस काल में
सर्वग्रासी मि्थ्यादर्शों के बीच ,
परम संतोष से
जिये जा रहे हैं
आँख,कान और मुँह बंद कर ,
ये तीन बंदर !