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"मुक्ति / प्रतिभा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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कोई एहसान नहीं किया हमने तुम पर !
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यह तो तुम्हारा अधिकार था और हमारा कर्तव्य !
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पीढियों का ऋण चढा था जो हम पर ,
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उतार, दिया तुमने आनन्द और सुख !
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आभार तुम्हारा !
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आत्मज मेरे !
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हमारा अस्तित्व व्याप्त रहेगा ,
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जहाँ तक जायेगा तुम्हारा विस्तार !
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तुम्हारा विकसता व्यक्तित्व सँवारने में,
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चूक गये होंगे कितनी बार
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आड़े आ गई होंगी हमारी सीमायें !
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पर तुम्हारे लिये खुली हैं आ-क्षितिज दिशायें !
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विस्तृत आकाश में उड़ान भरते
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कोई द्विविधा मन में सिर न उठाये
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कोई आशंका व्याप न जाये !
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चलना है बहुत आगे तक ,
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समर्थ हो तुम !
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शान्त और प्रसन्न मन से
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तुम्हें मुक्त कर देना चाहती हूँ अब
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और स्वयं को भी -
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हर बंधन से, भार से, अपेक्षा और अधिकार से,
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कि निश्तिन्त और निर्द्वंद्व रहें हम !
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जी सकें सहज जीवन, अपने अपने ढंग से !
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क्योंकि प्यार बाँधता नहीं मुक्त करता है
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और तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ मैं !
  
 
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08:52, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

कोई एहसान नहीं किया हमने तुम पर !
यह तो तुम्हारा अधिकार था और हमारा कर्तव्य !
पीढियों का ऋण चढा था जो हम पर ,
उतार, दिया तुमने आनन्द और सुख !
आभार तुम्हारा !
आत्मज मेरे !
हमारा अस्तित्व व्याप्त रहेगा ,
जहाँ तक जायेगा तुम्हारा विस्तार !
तुम्हारा विकसता व्यक्तित्व सँवारने में,
चूक गये होंगे कितनी बार
आड़े आ गई होंगी हमारी सीमायें !
पर तुम्हारे लिये खुली हैं आ-क्षितिज दिशायें !
विस्तृत आकाश में उड़ान भरते
कोई द्विविधा मन में सिर न उठाये
कोई आशंका व्याप न जाये !
चलना है बहुत आगे तक ,
समर्थ हो तुम !
शान्त और प्रसन्न मन से
तुम्हें मुक्त कर देना चाहती हूँ अब
और स्वयं को भी -
हर बंधन से, भार से, अपेक्षा और अधिकार से,
कि निश्तिन्त और निर्द्वंद्व रहें हम !
जी सकें सहज जीवन, अपने अपने ढंग से !
क्योंकि प्यार बाँधता नहीं मुक्त करता है
और तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ मैं !