भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सूर्य-ग्रहण : 3 / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) छो (सूर्य-ग्रहण : 3 / अरूण कमल moved to सूर्य-ग्रहण : 3 / अरुण कमल) |
|||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
जो लूट सके सो लूट । | जो लूट सके सो लूट । | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− |
07:41, 1 अगस्त 2008 का अवतरण
बहुत सुन्दर लगेगा सूर्य
धीरे-धीरे गिरेगा प्रकाश
और अन्त में रह जाएगी एक काली पुतली
रोशनी के वर्क़ में लिपटी,
कभी बस हीरे के नग-सा दमकता सूर्य
कभी मोतियों की माला-सा झिलमिल
कभी गरी की एक फाँक-भर उज्ज्वल
और एक क्षण को धरती पर बिछेगी
प्रकाश और अँधेरे से बुनी चटाई
बहुत सुन्दर, बहुत भव्य है ब्रह्मांड का यह दृश्य
जो लूट सके सो लूट ।