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| <br><br>*~*~*~*~*~*~* यहाँ से नीचे आप कविताएँ जोड सकते हैं ~*~*~*~*~*~*~*~*~<br><br> | | <br><br>*~*~*~*~*~*~* यहाँ से नीचे आप कविताएँ जोड सकते हैं ~*~*~*~*~*~*~*~*~<br><br> |
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− | '''शब्दों की तरफ़ से'''
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− | कभी कभी शब्दों की तरफ़ से भी
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− | दुनिया को देखता हूँ ।
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− | किसी भी शब्द को
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− | एक आतशी शीशे की तरह
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− | जब भी घुमाता हूँ आदमी, चीज़ों या सितारों की ओर
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− | मुझे उसके पीछे
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− | एक अर्थ दिखाई देता
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− | जो उस शब्द से कहीं बड़ा होता है
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− | ऐसे तमाम अर्थों को जब
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− | आपस में इस तरह जोड़ना चाहता हूँ
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− | कि उनके योग से जो भाषा बने
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− | उसमें द्विविधाओं और द्वाभाओं के
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− | सन्देहात्मक क्षितिज न हों, तब-
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− | सरल और स्पष्ट
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− | (कुटिल और क्लिष्ट की विभाषाओं में टूट कर)
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− | अकसर इतनी द्रुतगति से अपने रास्तों को बदलते
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− | कि वहाँ विभाजित स्वार्थों के जाल बिछे दिखते
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− | जहाँ अर्थपूर्ण संधियों को होना चाहिए ।
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− | 00000000000
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− | '''एक यात्रा के दौरान'''
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− | '''(एक)'''
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− | सफ़र से पहले अकसर
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− | रेल-सी लम्बी एक सरसराहट
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− | मेरी रीढ़ पर रेंग जाया करती है।
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− | याद आने लगते कुछ बढ़ते फ़ासले-
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− | जैसे जनता और सरकार के बीच,
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− | जैसे उसूलों और व्यवहार के बीच,
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− | जैसे सम्पत्ति और विपत्ति के बीच,
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− | जैसे गति और प्रगति के बीच
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− | घेरने लगती कुछ असह्य नज़दीकियाँ-
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− | जैसे दृढ़ता और विचलन के बीच,
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− | जैसे तेज़ी और फिसलन के बीच,
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− | जैसे सफ़ाई और गन्दगी के बीच,
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− | जैसे मौत और जिन्दगी के बीच ।
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− | याद आते छोटे-छोटे स्टेशनों पर फैले
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− | बीमार रोशनी के मैले मरियल उजाले,
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− | गाड़ी छूटने का बौखलाहट–भरा वक़्त,
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− | आरक्षण-चार्ट की अन्तिम कार्बन-कापी,
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− | याद आती ट्रेन के इस छोर से उस छोर तक
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− | बदहवास दौड़ती जनता अपने बीवी, बच्चों,
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− | सामान, कुली और जेब को एक साथ संभाले....
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− | '''(दो)'''
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− | सुबह चार बजे मुझे एक ट्रेन पकड़ना है।
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− | मुझे एक यात्रा पर जाना है।
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− | मुझे काम पर जाना है।
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− | मुझे कहाँ जाना है
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− | दशरथ की पत्नियों के प्रपंच से बच कर ?
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− | मुझ तरह तरह के कामों के पीछे
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− | कहाँ कहाँ जाना है ?
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− | कहाँ नहीं जाना है ?
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− | '''(तीन)'''
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− | एक गहरे विवाद में
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− | फँस गया है मेरा कर्तव्य-बोध :
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− | ट्रेन ही नहीं एक रॉकेट भी
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− | पकड़ना है मुझे अन्तरिक्ष के लिए
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− | ताकि एक डब्बे में ठसाठस भरा
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− | मेरा ग़रीब देश भी
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− | कह सके सगर्व कि देखो
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− | हम एक साधारण आदमी भी
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− | पहुँचा दिए गए चाँद पर
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− | पृथ्वी के आकर्षण के विरुद्ध
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− | आकाश की ओर ले जानेवाले ज्ञान के
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− | हम आदिम आचार्य हैं ।
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− | हमारी पवित्र धरती पर
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− | आमंत्रित देवताओं के विमान :
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− | न जाने कितनी बार हमने
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− | स्थापित किए हैं गगनचुम्बी उँचाइयों के कीर्तिमान !
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− | पर आज
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− | गृहदशा और ग्रहदशा दोनों
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− | कुछ ऐसे प्रतिकूल
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− | कि सातों दिन दिशाशूल :
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− | करते प्रस्थान
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− | रख कर हथेली पर जान
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− | चलते ज़मीन पर देखते आसमान,
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− | काल-तत्व खींचातान : एक आँख
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− | हाथ की घड़ी पर
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− | दूसरी आँख संकट की घड़ी पर ।
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− | न पकड़ से छूटता पुराना सामान,
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− | न पकड़ में आता छूटता वर्तमान।
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− | '''(चार)'''
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− | घटनाचक्र की तरह घूमते पहिये :
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− | वह भी एक नाटकीय प्रवेश होता है
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− | चलती ट्रेन पकड़ने वक़्त, जब एक पाँव
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− | छूटती ट्रेन पर और दूसरा
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− | छूटते प्लेटफ़ार्म पर होता है
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− | सरकते साँप-सी एक गति
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− | दो क़दमों के बीच की फिसलती जगह में,
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− | जब मौत को एक ही झटके में लाँघ कर
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− | हम डब्बे में निरापद हो जाना चाहते हैं :
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− | वह एक नया शुभारम्भ होता है किसी यात्रा का
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− | भागती ट्रेन में दोनो पांव जब
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− | एक ही समय में एक ही जगह होते हैं,
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− | जब कोई ख़तरा नहीं नज़र आता
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− | दो गतियों के बीच एक तीसरी संभावना का ।
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− | भविष्य के प्रति आश्वस्त
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− | एक बार फिर जब हम
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− | दुश्चिन्तामुक्त समय में - स्थिर चित्त -
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− | केवल जेब में रख्खे टिकट को सोचते हैं,
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− | उसके या अपने कहीं गिर जाने को नहीं ।
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− | '''(पाँच)'''
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− | कभी कभी दूसरों का साथ होना मात्र
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− | हमें कृतज्ञ करता
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− | दूसरों के साथ होने मात्र के प्रति,
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− | किसी का सीट बराबर जगह दे देना भी
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− | हमें विश्वास दिलाता कि दुनिया बहुत बड़ी है,
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− | जब अटैची पर एक हल्की-सी पकड़ भी
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− | ज़िंदगी पर पकड़ मालूम होती है,
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− | और दूसरों के लिए चिन्ता
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− | अपने लिए चिन्ताओं से मुक्ति.....
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− | '''(छह)'''
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− | कुछ आवाज़ें ।
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− | कोई किसी को लेने आया है ।
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− | कुछ और आवाज़ें ।
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− | कोई किसी को छोड़ने आया है।
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− | किसी का कुछ छूट गया है।
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− | छूटते स्टेशन पर
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− | छूटे वक़्त की हड़बड़ी में ।
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− | अब एक बज रहा स्टेशन की घड़ी में ।
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− | '''(सात)'''
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− | क्यों किसी की सन्दूक का कोना
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− | अचानक मेरी पिण्डली में गड़ने लगा ?
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− | क्यों मेरे सिर के ठीक ऊपर टिका
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− | गिरने-गिरने को वह बिस्तर अखरने लगा ?
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− | कौन हैं वे ?
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− | क्यों मेरी चिन्ताओं का एक कोना
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− | उनसे भरने लगा ?-
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− | मेरी एक ओर बैठा वह
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− | विक्षिप्त –सा युवक,
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− | मेरी दूसरी ओर वह चिन्तित स्त्री,
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− |
| |
− | अपने बच्चेको छाती से चिपकाये
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| |
− | दोनों के बीच मैं कौन हूँ --
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− | केवल एक आरक्षित जगह का दावेदार ?
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− | वह स्त्री और वह बच्चा
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− | क्यों नहीं दो मनुष्यों के बीच
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− | एक पूर्णतः सुरक्षित संसार ?
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− | क्यों यह निरन्तर आने जाने का क्रम
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− | अनाश्वस्त करता -
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− | और उस पूरी व्यवस्था को ध्वस्त
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− | जिस हम किसी तरह
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− | दो स्टेशनों के बीच मान लेते हैं ?
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− | जो अनायास मिलता और छूट जाता
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− | क्यों ऐसा
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− | मानो कुछ बनता और टूट जाता ?
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− | '''(आठ)'''
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− | शायद मैं ऊँघ कर
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− | लुढ़क गया था एक स्वप्न में -
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− | एक प्राचीन शिलालेख के अधमिटे अक्षर
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− | पढ़ते हुए चकित हूँ कि इतना सब समय
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− | कैसे समा गया दो ही तारीख़ों के बीच
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− | कैसे अट गया एक ही पट पर
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− | एक जन्म
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− | एक विवरण
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− | एक मृत्यु
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− | और वह एक उपदेश-से दिखते
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− | अमूर्त अछोर आकाश का अटूट विस्तार
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− | जिसमे न कहीं किसी तरफ़
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− | ले जाते रास्ते
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− | न कहीं किसी तरफ़ बुलाते संकेत,
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− | केवल एक अदृश्य हाथ
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− | अपने ही लिखे को कभी कहता स्वप्न
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− | कभी कहता संसार......
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− | अचानक वह ट्रेन जिसमें रखा हुआ था मैं
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− | और खिलौने की तरह छोटी हो गई,
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− | और एक बच्चे की हथेलियाँ इतनी बड़ी
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− | कि उस पर रेल-रेल खेलने लगे फ़ासले
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− | बना कर छोटे बड़े घर, पहाड़, मैदान, नदी, नाले .....
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− | उसकी क़लाई में बंधी पृथ्वी
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− | अकस्मात् बज उठी जैसे घुँघरू
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− | रेल की सीटी .....
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− | '''(नौ)'''
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− | शायद उसी वक़्त मैंने
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− | गिरते देका था ट्रेन से दो पांवों की
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− | और चौंक कर उठ बैठा था ।
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− | पैताने दो पांव-
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− | क्यों हैं यहां ? क्या करूं इनका ?
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− | सोच रात है अभी,
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− | सुबह उतार लूँगा इन्हें
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| |
− | अपने सामान के साथ ।
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− | सुबह हुई तो देखा
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− | कन्धों पर ढो रहे थे मुझे
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− | किसी और के पाँव ।
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− | हफ़्ते.....महीने....साल....
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− | बीत गए पल भर में,
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| |
− | “पिता ? तुम ? यहां ?”
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− | “मुझे चाहिए मेरे पाँव,....वापस करो उन्हें ।”
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− | “नहीं,वे मेरे हैं : मैं
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− | उन पर आश्रित हूँ।
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− | और मेरा परिवार :
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− | मैं उन्हें नहीं दे सकता तुम्हें !”
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− | वे हँसने लगे, एक बेजान असंगत हँसी ।
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− | कभी कभी किसी विषम घड़ी में हम
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− | जी डालते हैं एक पूरा जीवन - एक पूरी मृत्यु --
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− | एक पूरा सन्देह कि कौन चल रहा है
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− | किसके पाँवों पर ?
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− | '''(दस)'''
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− | नींद खुल गई थी
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− | शायद किसी बच्चे के रोने से
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− | या किसी माँ के परेशान होने से
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− |
| |
− | या किसी के अपनी जगह से उठने से
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− |
| |
− | या ट्रेन की गति के धीमी पड़ने से
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− |
| |
− | या शायद उस हड़कम्प से जो
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− |
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− | स्टेशन पास आने पर मचता है.....
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− |
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− | बाहर अँधेरा ।
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− |
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− | भीतर इतना सब
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− | एक मामूली-सी रोशनी में भी जगमग
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− | जागता और जगाता हुआ ।
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− |
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− | एक छोटा–सा प्लेटफ़ॉर्म सरक कर पास आता
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− |
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− | सुबह की रोशनी में,
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− | डब्बे में चढ़ते उतरते लोगों का ताँता
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− | कोई जगह ख़ाली करता
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− | कोई जगह बनाता ।
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− | '''(ग्यारह)'''
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− | बाहर किसी घसीट लिखावट में
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− | लिखे गए परिचित यात्रा-वृत्तान्त के
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− | फरकराते दृश्यों को बिना पढ़े
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− | पन्नों पर पन्ने उलटती चली जाती रफ़्तार :
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− | विवरण कहीं कहीं रोचक
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− | प्लॉट अव्यवस्थित, उथले विचार, उबाऊ विस्तार !
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− | भीतर एक डब्बे में खचाखच भरा
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− | एक टुकड़ा भारतीय समाज
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− | मानो कहानियों, फिल्मों, कॉमिक्स, अख़बार आदि से
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− | लेकर बनाये गये चरित्रों का कोलाज ।
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− | '''(बारह)'''
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− | यहाँ और वहाँ के बीच
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− | कहीं किसी उजाड़ जगह
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− | अनिश्चित काल के लिए
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− | खड़ी हो गई है ट्रेन ।
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− | दूर तक फैली ऊबड़खाबड़ पहाड़ियाँ,
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− |
| |
− | जगह जगह टेसू और बबूल की झाड़ियाँ,
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| |
− | काँस औऱ जँगली घास के झाड़झंखाड़,
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− | जहाँ तहाँ बरसाती पानी के तलाब .....
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− |
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− | वह सब जो चल रहा था
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− | अचानक अकारण अमय कहीं रुक गया है
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− | आशंका और उतावली के किसी असह्य बिन्दु पर ।
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− |
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− | कुछ हुआ है जो नहीं होना चाहिए था
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− | जो अकसर होता रहता है जीवन में ।
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− | कौन थे वे जो होकर भी नहीं होते ?
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− | ऐसा क्यों हुआ ? वैसा क्यों नहीं हुआ
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− |
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− | जैसा होना चाहिए था ?
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− | सवालों के एक उफान के बाद
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− | अलग अलग अनुमानों में निथर कर
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− | बैठ गई हैं उत्सुकताएँ ।
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− |
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− |
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− | फिर चल पड़ती है ट्रेन एक धक्के से
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− |
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− | घसीटती हुई अपने साथ
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− | उस शेष को भी जो घटित होगा
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| |
− | कुछ समय बाद
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| |
− | कहीं और
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− | किसी अन्य यहाँ और वहाँ के बीच
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− | '''(तेरह)'''
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− | धीमी पड़ती चाल ।
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− | अगले ठहराव पर
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− | उतर जाना है मुझे ।
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− | एक सिहरन-सी दौड़ जाती नसों में ।
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− |
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− | पहली बार वहाँ जा रहा हूँ ।
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− |
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− | हो सकता है कोई लेने आये, या कोई नहीं
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− |
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− | केवल एक सपाट प्लटफॉर्म मिले,
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− |
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− | बर्फीली ठंढक, अँधेरे और अनिश्चय का
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− | घना कोहरा : इतनी रात गये
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− | एक बिल्कुल नयी जगह से नयी तरह
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− | संबंध बनाता हुआ एक अजनबी ।
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− | एक ख़ामोश-सी तैयारी है मेरे आसपास
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− | जैसे यह मेरा घर था
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− | और अब मैं उसे छोड़कर कहीं और जा रहा हूँ ।
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− | '''(चौदह)'''
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− | कुछ लोग मुझे लेने आये हैं ।
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− | मैं उन्हें नहीं जानता :
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− | जैसे कुछ लोग मुझे छोड़ने आये थे
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− | जिन्हें मैं जानता था ।
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− | ट्रेन जा चुकी है
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− | एक अस्थायी भागदौड़ और अव्यवस्था बाद
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− | प्लेटफ़ॉर्म फिर एक सन्नाटे में जम गया है ।
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− | '''(पन्द्रह)'''
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− | आश्चर्य ! वह स्त्री और बच्चा भी
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− | अकेले खड़े हैं उधर ।
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− | क्या मैं कुछ कर सकता हूँ उनके लिए ?
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− | स्त्री मुझे निरीह आँखों से देखती है -
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− | “वो आते होंगे, मेरे लिए भी ......”
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− | कुछ दूर चल कर
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− | ठहर गया हूं –
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− | उसके लिए ?
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− | या अपने लिए ?
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− | देखता हूं उसकी आंखों में
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− | जो घिर आई थी एक दुश्चिन्ता-सी
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− | एक सरल कृतज्ञता में बदल जाती ।
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