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अन्तर्वासिनी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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09:53, 6 मार्च 2011
मधु-तृषित व्यथा उच्छवसित हुई,
अन्तर की क्षुधा अधर में री।
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तुम कौन प्राण के सर में ?
</poem>
चंद्र मौलेश्वर
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