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"हिमशृंग / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
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'''कविता का एक अंश ही उपलब्ध है। शेष कविता आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेजें ।''' | '''कविता का एक अंश ही उपलब्ध है। शेष कविता आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेजें ।''' | ||
+ | स्वच्छ केश रिषि से अँजलियाँ भर कमलों से | ||
+ | गिरि शृंगों पर चढ़ उदयमान दिनकर का | ||
+ | उपस्थान करते हैं मृदु गंभीर स्वरों में | ||
+ | स्निग्ध हँसी की किरणें फूट रही जग भर में | ||
+ | पुण्य नाद साँसों का पुलकित कर विपिनों को | ||
+ | मुखर खगों को, जमा रहा गृह-गृह में निंद्रा से | ||
+ | निश्चेष्ट पड़ी आत्मा को, मुक्त कर रहा | ||
+ | तिमिर-रूद्ध जीवन को पृथ्वी-मय प्रवाह को | ||
द्वार खुल गए अब भवनों के, शून्य पथों में | द्वार खुल गए अब भवनों के, शून्य पथों में | ||
शून्य घाटियों में सरिता के शून्य तटों पर | शून्य घाटियों में सरिता के शून्य तटों पर |
20:36, 7 मार्च 2011 का अवतरण
कविता का एक अंश ही उपलब्ध है। शेष कविता आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेजें ।
स्वच्छ केश रिषि से अँजलियाँ भर कमलों से
गिरि शृंगों पर चढ़ उदयमान दिनकर का
उपस्थान करते हैं मृदु गंभीर स्वरों में
स्निग्ध हँसी की किरणें फूट रही जग भर में
पुण्य नाद साँसों का पुलकित कर विपिनों को
मुखर खगों को, जमा रहा गृह-गृह में निंद्रा से
निश्चेष्ट पड़ी आत्मा को, मुक्त कर रहा
तिमिर-रूद्ध जीवन को पृथ्वी-मय प्रवाह को
द्वार खुल गए अब भवनों के, शून्य पथों में
शून्य घाटियों में सरिता के शून्य तटों पर
जाग उठीं जीवन समुद्र की मुखर तरंगें
पृथ्वी के शैलों पर, पृथ्वी के विपिनों पर
पृथ्वी की नदियों पर पड़ी स्वर्ण की छाया
उदित हुए दिनकर इनकी पूजा से घिर कर