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"शेष हैं परछाइयाँ / हरीश निगम" के अवतरणों में अंतर

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फट गए

20:35, 8 मार्च 2011 का अवतरण

फट गए
सारे गुलाबी चित्र

सूख कर
झरता हरापन
और उड़ती धूल
शेष हैं परछाइयाँ कुछ
दर्द वाले फूल
टीसते हैं
फाँस जैसे मित्र

एक आदमखोर-चुप्पी
लीलती दिन-रात
और
दमघोटू हवाएँ
हर कदम आघात,
खो गए
काले धुएँ में इत्र