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"गाय का जीवन / गणेश पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
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10:56, 11 मार्च 2011 के समय का अवतरण
वे गुस्से में थे बहुत
कुछ तो पहली बार इतने गुस्से में थे
यह सब
उस गाय के जीवन को लेकर हुआ
जिसे वे खूँटे बाँधकर रखते थे
और थोड़ी-सी हरियाली के एवज में
छीन लिया करते थे जिसके बछड़े का
सारा दूध
और वे जिन्हें नसीब नहीं हुई
कभी कोई गाय, चाटने भर का दूध
वे भी मरने-मारने को तैयार थे
कितना सात्त्विक था उनका क्रोध
कैसी बस्ती थी
कैसे धर्मात्मा थे, जिनके लिए कभी
गाय के जीवन से बड़ा हुआ ही नहीं
मनुष्य के जीवन का प्रश्न ।