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+ | हित उदास रघुबर बिरह बिकल सकल नर नारि। | ||
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+ | सीय सुमित्रा सुवन गति भरत सनेह सुभाउ। | ||
+ | काहिबे को सारद सरस जनिबे को रघुराउ।202। | ||
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+ | जानी राम न कहि सके भरत लखन सिय प्रीति। | ||
+ | सो सुनि गुनि तुलसी कहत हठ सठता की रीति।203। | ||
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+ | सम बिधि समरथ सकल कह सहि साँसति दिन राति । | ||
+ | भलो निबाहेउ सुनि समुझि स्वामिधर्म सब भाँति।204। | ||
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+ | भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरिहर पद पाइ। | ||
+ | कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ।205। | ||
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+ | संपति चकई भरत चक मुनि आयस खेलवार। | ||
+ | तेहि निसि आश्रम पिंजाराँ राखे भा भिनुसार।206। | ||
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+ | सघन चोर मग मुदित मन धनी गही ज्यों फेंट। | ||
+ | त्यों सुग्रीव बिभीषनहिं भई भरतकी भेंट।207। | ||
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+ | राम सराहे भरत उठि मिले राम सम जानि। | ||
+ | तदपि बिभीषन कीसपति तुलसी गरत गलानि।।208। | ||
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+ | भरत स्याम तन राम सम सब गुन रूप् निधान। | ||
+ | सेवक सुखदायक सुलभ सुमिरत सब कल्यान।209। | ||
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+ | ललित लखन मुरति मधुर सुमिरहु सहित सनेह। | ||
+ | सुख संपति कीरति बिजय सगुन सुमंगल गेह।210। | ||
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16:45, 13 मार्च 2011 के समय का अवतरण
दोहा संख्या 201 से 210
हित उदास रघुबर बिरह बिकल सकल नर नारि।
भरत लखन सिय गति समुझि प्रभु चख सदा सुबारि।201।
सीय सुमित्रा सुवन गति भरत सनेह सुभाउ।
काहिबे को सारद सरस जनिबे को रघुराउ।202।
जानी राम न कहि सके भरत लखन सिय प्रीति।
सो सुनि गुनि तुलसी कहत हठ सठता की रीति।203।
सम बिधि समरथ सकल कह सहि साँसति दिन राति ।
भलो निबाहेउ सुनि समुझि स्वामिधर्म सब भाँति।204।
भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरिहर पद पाइ।
कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ।205।
संपति चकई भरत चक मुनि आयस खेलवार।
तेहि निसि आश्रम पिंजाराँ राखे भा भिनुसार।206।
सघन चोर मग मुदित मन धनी गही ज्यों फेंट।
त्यों सुग्रीव बिभीषनहिं भई भरतकी भेंट।207।
राम सराहे भरत उठि मिले राम सम जानि।
तदपि बिभीषन कीसपति तुलसी गरत गलानि।।208।
भरत स्याम तन राम सम सब गुन रूप् निधान।
सेवक सुखदायक सुलभ सुमिरत सब कल्यान।209।
ललित लखन मुरति मधुर सुमिरहु सहित सनेह।
सुख संपति कीरति बिजय सगुन सुमंगल गेह।210।