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"होली गीत / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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आयी है रंगो की बहार
 
आयी है रंगो की बहार
  

18:49, 15 मार्च 2011 का अवतरण

आयी है रंगो की बहार

गोरी होली खेलन चली


ललिता भी खेले विशाखा भी खेले

संग में खेले नंदलाल...

गोरी होली खेलन चली ।


लाल गुलाल वे मल मल लगावें

होवत होवें लाल लाल...

गोरी होली खेलन चली


रूठी राधिका को श्याम मनावें

प्रेम में हुए हैं निहाल...

गोरी होली खेलन चली


सब रंगों में प्रेम रंग सांचा

लागत जियरा मारै उछाल...

गोरी होली खेलन चली


होली खेलत वे ऐसे मगन भयीं

मनुंआ में रहा न मलाल...

गोरी होली खेलन


तन भी भीग गयो मन भी भीग गयो

भीगा है सोलह शृंगार...

गोरी होली खेलन चली


झ्सको सतावें उसको मनावें

कान्हा की देखो यह चाल...

गोरी होली खेलन चली


कैसे बताऊँ मैं कैसे छुपाऊँ

रंगों ने किया है जो हाल...

गोरी होली खेलन चली


आओ मिल के प्रेम बरसायें

अम्बर तक उड़े गुलाल...

गोरी होली खेलन चली ।