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|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
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चलो, चलें चम्पागढ़--सपनों के देश
 
प्यारे के देश
 
उत्तर से आ रही हवाएँ
 बूंदों बूँदों की झालर पहने 
दक्षिण में उठ-उठकर छा रहे
 
पागल बादल गहिरे!
 
बिजली के बजते संदेश
 
प्यारे के देश
 
दस दिन के पाँव और दस दिन की नाव
 
दूर देश रे
 
तब जाकर मिल पाएगा पिय का गाँव
 
दूर देश रे
 
ऎसा विधना का आदेश
 
प्यारे के देश
 
चलो, चलें चम्पागढ़--सपनों के देश
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