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"बहाव / वाज़दा ख़ान" के अवतरणों में अंतर

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संवेदनाए~म
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संवेदनाएँ
 
हृदय से ही नहीं
 
हृदय से ही नहीं
 
समूचे अस्तित्व से करती हैं विद्रोह
 
समूचे अस्तित्व से करती हैं विद्रोह

20:50, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण

संवेदनाएँ
हृदय से ही नहीं
समूचे अस्तित्व से करती हैं विद्रोह
झिंझोड़ देती हैं कसकर
भीतर बह रहे मौन उन्माद के दरिया को

पृथ्वी के माथे पर
नहीं पड़ती शिकन
समुद्र मेम कहीं नहीं आते चक्रवात
क्रन्दन नहीं करती लहरें
शिखर पर नहीं पिघलती बर्फ़
विस्मृत नहीं होतीं ख़्वाहिशें

यह कैसा बहाव है जो
अपने संग समय / परिवेश / हृदय
स्वत्व सभी को बहा ले जाता है ।