भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लहरें / कौशल किशोर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कौशल किशोर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> लहरें जब उठती हैं …)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:50, 23 मार्च 2011 के समय का अवतरण

लहरें जब उठती हैं
लहरें जब बनती हैं
लहरें जब अपनी निर्माण-प्रक्रिया से गुजरती हैं
लहरें जब कगारों से टकराती हैं
पछाड़ खाती हैं
और बिखर जाती हैं
उनका आरम्भ अमूमन यही होता है
स्वतः स्फूर्त
लहरें फिर बनती हैं

इतिहास के पटल पर
लहरों के बनने की
एक सूत्र में बंधने की
कोशिशें लगातार जारी हैं
यह अकारण नहीं है
यह महज एक घटना नहीं है
हमने देखा है
धुएँ और धुँध की गिरफ़्त में
कगारों के इतिहास को
मुक्ति के लिए छटपटाते हुए
जहाँ हर चीज़
खण्डों और सारणियों में विभाजित हो जाती है
यहाँ का गणित
पट्टे-पटवारी के सहारे
कई तरह के गणितों में टूट जाता है

लहरें एक सिलसिले की तरह
नये सिरे से बनती हैं
बूँद-बूँद को जोड़ती हुई
अपनी हिलोरों को गोलबन्द करती हुई
झूमती और मचलती हुई
वायु-वेग के साथ आवेगशील हो
बढ़ती हैं कगारों की तरफ़

लहरें इस बार धरती के लिए बहुत कुछ लाती हैं
लहरें इस बार धरती के लिए नई मिट्टी लाती हैं ।