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"हमारी हिंदी / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

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हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीबी है
 
हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीबी है
 
 
बहुत बोलने वाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली
 
बहुत बोलने वाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली
  
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गहने गढ़ाते जाओ
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सर पर चढ़ाते जाओ
  
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वह मुटाती जाए
 
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पसीने से गन्धाती जाए घर का माल मैके पहुँचाती जाए
सर पर चढाते जाओ
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वह मुटाती जाये
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पड़ोसिनों से जले
 
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कचरा फेंकने को लेकर लड़े
 
कचरा फेंकने को लेकर लड़े
  
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घर से तो ख़ैर निकलने का सवाल ही नहीं उठता
 
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औरतों को जो चाहिए घर ही में है
 
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एक महाभारत है  एक रामायण है  तुलसीदास की भी राधेश्याम की भी
 
एक महाभारत है  एक रामायण है  तुलसीदास की भी राधेश्याम की भी
 
 
एक नागिन की स्टोरी बमय गाने
 
एक नागिन की स्टोरी बमय गाने
 
 
और एक खारी बावली में छपा कोकशास्त्र
 
और एक खारी बावली में छपा कोकशास्त्र
 
 
एक खूसट महरिन है परपंच के लिए
 
एक खूसट महरिन है परपंच के लिए
 
 
एक अधेड़ खसम है जिसके प्राण अकच्छ किये जा सकें
 
एक अधेड़ खसम है जिसके प्राण अकच्छ किये जा सकें
 
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एक गुचकुलिया-सा आँगन कई कमरे कुठरिया एक के अंदर एक
एक गुचकुलिया-सा आंगन कई कमरे कुठरिया एक के अंदर एक
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बिस्तरों पर चीकट तकिए   कुरसियों पर गौंजे हुए उतारे कपड़े
 
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बिस्तरों पर चीकट तकिये   कुरसियों पर गौंजे हुए उतारे कपड़े
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फ़र्श पर ढंनगते गिलास
 
फ़र्श पर ढंनगते गिलास
 
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खूंटियों पर कुचैली चादरें जो कुएँ पर ले जाकर फींची जाएँगी
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घर में सबकुछ है जो औरतों को चाहिए
 
घर में सबकुछ है जो औरतों को चाहिए
 
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सीलन भी और अंदर की कोठरी में पाँच सेर सोना भी
सीलन भी और अंदर की कोठरी में पांच सेर सोना भी
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और संतान भी जिसका जिगर बढ गया है
 
और संतान भी जिसका जिगर बढ गया है
 
 
जिसे वह मासिक पत्रिकाओं पर हगाया करती है
 
जिसे वह मासिक पत्रिकाओं पर हगाया करती है
 
 
और ज़मीन भी जिस पर हिंदी भवन बनेगा
 
और ज़मीन भी जिस पर हिंदी भवन बनेगा
 
 
  
 
कहनेवाले चाहे कुछ कहें
 
कहनेवाले चाहे कुछ कहें
 
 
हमारी हिंदी सुहागिन है  सती है  खुश है
 
हमारी हिंदी सुहागिन है  सती है  खुश है
 
 
उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे
 
उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे
 
 
और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे
 
और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे
 
 
तब तो वह अपनी साध पूरी करे ।
 
तब तो वह अपनी साध पूरी करे ।
  
(रघुवीर सहाय,1957)
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00:56, 28 मार्च 2011 का अवतरण

हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीबी है
बहुत बोलने वाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली

गहने गढ़ाते जाओ
सर पर चढ़ाते जाओ

वह मुटाती जाए
पसीने से गन्धाती जाए घर का माल मैके पहुँचाती जाए

पड़ोसिनों से जले
कचरा फेंकने को लेकर लड़े

घर से तो ख़ैर निकलने का सवाल ही नहीं उठता
औरतों को जो चाहिए घर ही में है

एक महाभारत है एक रामायण है तुलसीदास की भी राधेश्याम की भी
एक नागिन की स्टोरी बमय गाने
और एक खारी बावली में छपा कोकशास्त्र
एक खूसट महरिन है परपंच के लिए
एक अधेड़ खसम है जिसके प्राण अकच्छ किये जा सकें
एक गुचकुलिया-सा आँगन कई कमरे कुठरिया एक के अंदर एक
बिस्तरों पर चीकट तकिए कुरसियों पर गौंजे हुए उतारे कपड़े
फ़र्श पर ढंनगते गिलास
खूंटियों पर कुचैली चादरें जो कुएँ पर ले जाकर फींची जाएँगी

घर में सबकुछ है जो औरतों को चाहिए
सीलन भी और अंदर की कोठरी में पाँच सेर सोना भी
और संतान भी जिसका जिगर बढ गया है
जिसे वह मासिक पत्रिकाओं पर हगाया करती है
और ज़मीन भी जिस पर हिंदी भवन बनेगा

कहनेवाले चाहे कुछ कहें
हमारी हिंदी सुहागिन है सती है खुश है
उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे
और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे
तब तो वह अपनी साध पूरी करे ।

(1957)