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18:53, 28 मार्च 2011 का अवतरण
स्वर वसंत फूटे
टूटे बंध छंद-कलियों के, गीत-सरित छूटे
तान कोकिला की कल कूजें
शब्द, मधुप-माला बन गूँजें
राग-सुमन चरणों के पूजे
तरुओं ने लूटे
नाद-अतनु तनु-तनु में व्यापा
नग्न ताल, मूर्छित वन काँपा
लय ने किसलय-पट से ढाँपा
बोल बने बूटे
मलयज के तारों पर मचली
बन मंजरी मींड़ की उँगली
स्नेही सरसों-भीड़ बढ़ चली
भर पराग मूठे
स्वर वसंत फूटे