भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बरखा का दिन / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("बरखा का दिन / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=मार प्यार की थापें / केदारनाथ अग्रवाल
 
|संग्रह=मार प्यार की थापें / केदारनाथ अग्रवाल
 
}}
 
}}
 +
{{KKAnthologyVarsha}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 
{{KKCatNavgeet}}

19:09, 31 मार्च 2011 के समय का अवतरण

मैंने देखा :
यह बरखा का दिन!
मायावी मेघों ने सिर का सूरज काट लिया;
गजयूथों ने आसमान का आँगन पाट दिया;
फिर से असगुन भाख रही रजकिन।

मैंने देखा :
यह बरखा का दिन!
दूध-दही की गोरी ग्वालिन डरकर भाग गई;
रूप-रूपहली धूप धरा को तत्क्षण त्याग गई;
हुड़क रही अब बगुला को बगुलिन!

मैंने देखा :
यह बरखा का दिन!
बड़े-बड़े बादल के योद्धा बरछी मार रहे;
पानी-पवन-प्रलय के रण का दृश्य उभार रहे;
तड़प रही अब मुँह बाए बाघिन।

रचनाकाल: २७-०७-१९७९