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उन्हें मालूम था सिर वहीं हिलाना है | उन्हें मालूम था सिर वहीं हिलाना है | ||
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गायक क्या गा रहा है ख़याल या तराना | गायक क्या गा रहा है ख़याल या तराना | ||
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00:32, 19 जून 2007 के समय का अवतरण
बहुत से लोग थे चारों ओर
कुछ वे
जिन्हें हम जानते थे
कुछ वे
जिन्हें नहीं जानते थे हम
कमोबेश एक से लगते थे सब
जो परिचित थे
वे अनजाने से लगते थे
जो थे अपरिचित
वे पहचाने से
दोनों में कोई ख़ास फ़र्क नहीं
सब अपनी-अपनी सुविधाओं की खोज में
नकली चेहरे पहने
मुस्कुराते-बतियाते
गिलास टकराते
जैसे जन्मों के साथी हों
सब वही
जो वक्त पर आते नहीं हैं काम
चमकते-दमकते कपड़ों में
जिनके पास एक भी पैसा नहीं
ज़रूरत के वक्त
न कोई सोच न सौजन्य
लम्बी-लम्बी बातों के सिवा
हर आस्तीन में समाए हुए
हर देश में
नशे में धुत
नशा किस बात का था?
शराब का
दिखावे का
या आत्महीनता को भुलाने का तरीका था यह ?
सारी जनता फ़िदा थी उन पे
उनका अभिनय बेमिसाल था
वे सच को झूठ
और झूठ को सच साबित करने में लगे थे
अंदाज़ के साथ
आवाज़ को ऊँचा और नीचा करते हुए
फिर भी
पकड़ा जा सकता था उन का झूठ
और सच
जो सच नहीं था
खाने में परम आनंद था !
जैसे बरसों से न खाया हो
अरबी भोजन को मैक्सिकन बताते
इतालवी को यूनानी
एक-एक चीज़ की तारीफ़ करते हुए
भयंकर व्याख्याओं के साथ, गोया वे पाकशास्त्री हों
अपने आभिजात्य को सहलाते
दूसरों को उसमें लपेटते
संगीत की प्रशंसा करते
संगीत!
आश्चर्य की बात भारतीय था
बोल समझ में नहीं आते थे
सिर झटक कर इशारा देता था तबलची सम का
उन्हें मालूम था सिर वहीं हिलाना है
कमर नहीं मटकानी है
सिर्फ़ उँगलियाँ थिरकानी हैं ।
यों तो बीच में भी
न जाने कितनी जगहें थीं
जहाँ 'वाह' कहा जा सकता था
बजाई जा सकती थीं तालियाँ
बंदिश पूरी होने से पहले
पर सब चुप थे
कोई नहीं था यह पूछने वाला
कि राग भैरवी है या शिवरंजनी
गायक क्या गा रहा है ख़याल या तराना
उन्हें चंद मशहूर संगीतज्ञों के नाम याद थे
रविशंकर, परवीन सुल्ताना और वही जो अग्रेज़ी में भी गाता है
हाँ--हरिहरन
कितना व्यापक अध्ययन था उनके संगीत शास्त्र का !
एक-आध वेद और पुराण की बातें करते थे
कुण्डलिनी जागरण और ध्यान !
उनका अभ्यास इतना तगड़ा था
कि वे पांच-तारा-होटल की तेइसवीं मंज़िल की छत को
अपने ध्यान से गिरा कर
हथेली पर थाम लेने वाले थे
विवाद करते थे वे संस्कृत के सही उच्चारण का
विलायती-सी अंग्रेज़ी में
कोई नहीं था
जो ज़ोर से चिल्लाता
ख़त्म करो यह नाटक
बहुत हो चुकी डींगें
एक-एक सच्चाई मुझे मालूम है तुम्हारी
कोई नहीं थी कड़कती तीखी सच आवाज़
क्या सब नशे में थे ?
या खीजते हुए शब्दों के जाल बुन रहे थे मेरी तरह ?