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"चाँद चड्यो गिगनार /राजस्थानी" के अवतरणों में अंतर
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'''यहाँ नारी को रात होने से पहले घर पहुँचने जाना चाहिए, नहीं तो बड़े-बूढ़े नाराज़ होंगे...''' | '''यहाँ नारी को रात होने से पहले घर पहुँचने जाना चाहिए, नहीं तो बड़े-बूढ़े नाराज़ होंगे...''' |
22:44, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण
♦ रचनाकार: अज्ञात
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यहाँ नारी को रात होने से पहले घर पहुँचने जाना चाहिए, नहीं तो बड़े-बूढ़े नाराज़ होंगे...
चाँद चड्यो गिगनार
फिरत्या ढल रहिया जी
अब बाई घराँ पधार
भाऊजी मारेला
बाबूसा देला गहल बडोरा
बीर बरजेला
मत दयो बाई ने गाल
भाई म्हारी चिड़ी कली
आज उड़े पर मान
तडके उड़ जासी जी