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"तुलना / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

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गडरिये कितने सुखी हैं ।
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गडरिए कितने सुखी हैं ।
  
 
न वे ऊँचे दावे करते हैं
 
न वे ऊँचे दावे करते हैं
 
 
न उनको ले कर
 
न उनको ले कर
 
 
एक दूसरे को कोसते या लड़ते-मरते हैं।
 
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जबकि
 
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जनता की सेवा करने के भूखे
 
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सारे दल भेडियों से टूटते हैं ।
सारे दल भेडियों से टूटते हैं।
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ऐसी-ऐसी बातें
 
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और ऐसे-ऐसे शब्द सामने रखते हैं
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जैसे कुछ नहीं हुआ है
 
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और सब कुछ हो जाएगा ।
 
और सब कुछ हो जाएगा ।
  
 
जबकि
 
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सारे दल
 
सारे दल
 
 
पानी की तरह धन बहाते हैं,
 
पानी की तरह धन बहाते हैं,
 
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गडरिए मेंड़ों पर बैठे मुस्कुराते हैं
गडरिये मेडों पर बैठे मुस्कुराते हैं
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... भेडों को बाड़े में करने के लिए
 
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भेडों को बाड में करने के लिए
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न सभाएँ आयोजित करते हैं
 
न सभाएँ आयोजित करते हैं
 
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            न रैलियाँ,
न रैलियाँ,
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न कंठ खरीदते हैं, न हथेलियाँ,
 
न कंठ खरीदते हैं, न हथेलियाँ,
 
 
न शीत और ताप से झुलसे चेहरों पर
 
न शीत और ताप से झुलसे चेहरों पर
 
 
आश्वासनों का सूर्य उगाते हैं,
 
आश्वासनों का सूर्य उगाते हैं,
 
 
स्वेच्छा से
 
स्वेच्छा से
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जिधर चाहते हैं, उधर
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भेड़ों को हाँके लिए जाते हैं ।
  
जिधर चाहते हैं ,उधर
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गडरिए कितने सुखी हैं ।
 
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भेडों को हाँके लिए जाते हैं ।
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गडरिये कितने सुखी हैं ।
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10:43, 4 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

गडरिए कितने सुखी हैं ।

न वे ऊँचे दावे करते हैं
न उनको ले कर
एक दूसरे को कोसते या लड़ते-मरते हैं।
जबकि
जनता की सेवा करने के भूखे
सारे दल भेडियों से टूटते हैं ।
ऐसी-ऐसी बातें
और ऐसे-ऐसे शब्द सामने रखते हैं
जैसे कुछ नहीं हुआ है
और सब कुछ हो जाएगा ।

जबकि
सारे दल
पानी की तरह धन बहाते हैं,
गडरिए मेंड़ों पर बैठे मुस्कुराते हैं
... भेडों को बाड़े में करने के लिए
न सभाएँ आयोजित करते हैं
            न रैलियाँ,
न कंठ खरीदते हैं, न हथेलियाँ,
न शीत और ताप से झुलसे चेहरों पर
आश्वासनों का सूर्य उगाते हैं,
स्वेच्छा से
जिधर चाहते हैं, उधर
भेड़ों को हाँके लिए जाते हैं ।

गडरिए कितने सुखी हैं ।