भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तिरसा / रवि पुरोहित" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>जनपथ माथै जन नीं दिखै गुरू चेलां सूं पढणो सीखै कैङो जमानो आयो भ…) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | <poem>जनपथ माथै | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार= रवि पुरोहित | ||
+ | }} | ||
+ | [[Category:मूल राजस्थानी भाषा]] | ||
+ | {{KKCatKavita}}<poem>जनपथ माथै | ||
जन नीं दिखै | जन नीं दिखै | ||
गुरू चेलां सूं | गुरू चेलां सूं |
05:14, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण
जनपथ माथै
जन नीं दिखै
गुरू चेलां सूं
पढणो सीखै
कैङो जमानो आयो भाई
हाथी सस्ता
मूंगा दांत
चौडे-चौगानां बिकै !
राजघाट
फूलां नैं तरसै
जीव-जिलफ
रोटी पर बरसै
कैङो जमानो आयो भाई
पणघट अबै
मरै तिसायो
बाप मर्यां
बेटो मन हरसै !
संसद
वर, वर-वर नै धापी
सदाचार
बखाणै पापी
कैङो जमानो आयो भाई
काण-कायदो
चांद ईद रो
बेटो बाप नैं देवै थापी !
धायो,
म्हैं तो धायो भाई
खूणियां तांणी जोङूं हाथ,
पळ-पळ
मर-मर
कद लग जीऊं
थारो-म्हारो इत्तो ई साथ
मंजूर म्हनैं ई मरणो है पण
चावूं
जीवन पैलां भरल्यूँ बांथ ।