भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मन की चाह / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय | |संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKAnthologyLove}} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> |
11:33, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
तू मेरी होगी
मन में मेरे चाह यही थी
तू मिलेगी मुझको तेरा प्यार मिलेगा
विरहाकुल मन को मेरे
तेरे उर का सार का मिलेगा
यही सोच मैं कलरव करता
गाता मीठे गान
पर बदल रही है भीतर से तू
न था यह अनुमान
सोच न पाया व्यथा मिलेगी
दारुण हाहाकार मिलेगा
तू मेरी प्रियतमा रूपवंता
तुझसे नीरस संसार मिलेगा
अवचेतन में स्तब्ध शून्य था
बची जरा भी दाह नहीं थी
दृष्टि धुँधली हो गई मेरी
शेष अब कोई राह नहीं थी
(2002)