भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"स्वयम्वर-कथा (रामचन्द्रिका से) / केशवदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशवदास }} <poem> '''सव्याम्वर-कथा''' [दोहा] खं…)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
                          '''सव्याम्वर-कथा'''
+
                                  '''सव्याम्वर-कथा'''
[दोहा]
+
          [दोहा]
 
खंड्परस को सोभिजे, सभामध्य कोदंड।
 
खंड्परस को सोभिजे, सभामध्य कोदंड।
 
मानहुं शेष अशेष धर, धरनहार बरिबंड।।१।।
 
मानहुं शेष अशेष धर, धरनहार बरिबंड।।१।।
 +
 +
          [सवैया]
 +
सोभित मंचन की आवली, गजदंतमयी छवि उज्जवल छाई।
 +
ईश मनो वसुधा में सुधारि, सुधाधरमंडल मंडि जोन्हई।।
 +
तामहँ केशवदास विराजत, राजकुमार सबै सुखदाई।
 +
देवन स्यों जनु देवसभा, सुभ सीयस्वयम्वर देखन आई।।२।।
 +
 +
          [घनाक्षरी]
 +
पावक पवन मणिपन्नग पतंग पितृ,
 +
    जेते ज्योतिविंत जग ज्योतिषिन गाए है।
 +
असुर प्रसिद्ध सिद्ध तीरथ सहित सिंधु,
 +
    केशव  चराचर  जे  वेदन  बताए  हैं।
 +
अजर अमर अज अंगी औ अनंगी सब,
 +
    बरणि  सुनावै  ऐसे  कौन गुण पाए हैं।
 +
सीता के स्वयम्वर को रूप अवलोकिबे कों,
 +
    भूपन को रूप धरि विश्वरूप आयें हैं।।३।।
 +
 +
          [सवैया]
 +
सातहु दीपन के अवनिपति हारि रहे जिय में जब जानें।
  
  

14:24, 16 अप्रैल 2011 का अवतरण

                                  सव्याम्वर-कथा
          [दोहा]
खंड्परस को सोभिजे, सभामध्य कोदंड।
मानहुं शेष अशेष धर, धरनहार बरिबंड।।१।।

           [सवैया]
सोभित मंचन की आवली, गजदंतमयी छवि उज्जवल छाई।
ईश मनो वसुधा में सुधारि, सुधाधरमंडल मंडि जोन्हई।।
तामहँ केशवदास विराजत, राजकुमार सबै सुखदाई।
देवन स्यों जनु देवसभा, सुभ सीयस्वयम्वर देखन आई।।२।।

          [घनाक्षरी]
पावक पवन मणिपन्नग पतंग पितृ,
    जेते ज्योतिविंत जग ज्योतिषिन गाए है।
असुर प्रसिद्ध सिद्ध तीरथ सहित सिंधु,
    केशव चराचर जे वेदन बताए हैं।
अजर अमर अज अंगी औ अनंगी सब,
    बरणि सुनावै ऐसे कौन गुण पाए हैं।
सीता के स्वयम्वर को रूप अवलोकिबे कों,
    भूपन को रूप धरि विश्वरूप आयें हैं।।३।।

          [सवैया]
सातहु दीपन के अवनिपति हारि रहे जिय में जब जानें।