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"शव से प्रेम / विमल कुमार" के अवतरणों में अंतर

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05:54, 17 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

मैं जानता हूँ
एक ऐसी औरत को
जो करती है शव से ही प्यार

चूमती है उसके होठों को
बालों को सहलाती है
भरती है उसे अपनी बाँहों में
लिखती है उसे ख़त भी
भेजती है आसमान के पते पर

मैंने उससे कहा
अब तुम क्यों करती हो
उस शव से प्यार
जीते जी तुमने नहीं किया
जबकि वह मर गया
तुमसे प्यार की भीख माँगता हुआ
घुट-घुट कर

उसने सिसकते हुए कहा
मैं केवल शव से
करती हूँ इसलिए प्यार
मुर्दे मर्द की तरह कभी धोखा नहीं देते
औरत को ।