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"पहाड़ / अजेय" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem> (चित्रकार सुखदास की पेंटिंग्ज़ देखते हुए ) '''अकड़''' रंग बरंगे …)
 
 
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(चित्रकार सुखदास की पेंटिंग्ज़ देखते हुए तीन कविताएँ)  
(चित्रकार सुखदास की पेंटिंग्ज़ देखते हुए )  
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'''अकड़'''
 
'''अकड़'''
 
    
 
    
रंग बरंगे पहाड़  
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रंग-बिरंगे पहाड़  
 
रूह न रागस  
 
रूह न रागस  
 
ढोर न डंगर  
 
ढोर न डंगर  
 
न बदन पे जंगल......   
 
न बदन पे जंगल......   
अलफ नंगे पहाड़ !  
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अलफ़ नंगे पहाड़ !  
साँय साँय करती ठंड में  
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साँय-साँय करती ठंड में  
 
देखो तो कैसे  
 
देखो तो कैसे  
 
ठुक से खड़े हैं  
 
ठुक से खड़े हैं  
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पर ज़रा सोचो गुरुजी  
 
पर ज़रा सोचो गुरुजी  
जब निकल आयेगी
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जब निकल आएगा
 
इस की छाती मे एक छेद     
 
इस की छाती मे एक छेद     
और घुस आएंगे इस स्वर्ग मे  
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और घुस आएँगे इस स्वर्ग मे  
 
मच्छर  
 
मच्छर  
 
साँप      बन्दर  
 
साँप      बन्दर  
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तब भी तुम इन्हे ऐसे ही बनाओगे  
 
तब भी तुम इन्हे ऐसे ही बनाओगे  
 
अकड़ू  
 
अकड़ू  
और खामोश ?  
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20:59, 20 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

(चित्रकार सुखदास की पेंटिंग्ज़ देखते हुए तीन कविताएँ)
 
अकड़
  
रंग-बिरंगे पहाड़
रूह न रागस
ढोर न डंगर
न बदन पे जंगल......
अलफ़ नंगे पहाड़ !
साँय-साँय करती ठंड में
देखो तो कैसे
ठुक से खड़े हैं
ढीठ
बिसरमे पहाड़ !
 
चुप्पी
 
काश ये पहाड़
बोलते होते
तो बोलते
काश
हम बोलते होते

सुरंग
 
पर ज़रा सोचो गुरुजी
जब निकल आएगा
इस की छाती मे एक छेद
और घुस आएँगे इस स्वर्ग मे
मच्छर
साँप बन्दर
टूरिस्ट
और ज़हरीली हवा
और शहर की गन्दी नीयत
और घटिया सोच, गुरुजी
तब भी तुम इन्हे ऐसे ही बनाओगे
अकड़ू
और ख़ामोश ?

1996