"संगतकार / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती | |
− | वह | + | वह आवाज़ सुंदर कमजोर काँपती हुई थी |
− | वह | + | वह मुख्य गायक का छोटा भाई है |
− | या उसका | + | या उसका शिष्य |
− | या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई | + | या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार |
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वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से | वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से | ||
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जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन | जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन | ||
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जब वह नौसिखिया था | जब वह नौसिखिया था | ||
− | + | तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला | |
− | प्रेरणा | + | प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ |
आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ | आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ | ||
− | तभी | + | तभी मुख्य गायक को ढाढस बँधाता |
− | कहीं से चला आता है संगतकार का | + | कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर |
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ | कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ | ||
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गाया जा चुका राग | गाया जा चुका राग | ||
− | और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक | + | और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है |
− | या अपने | + | या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है |
उसे विफलता नहीं | उसे विफलता नहीं | ||
− | उसकी | + | उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए। |
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+ | (रचनाकाल : 1995) |
22:55, 8 सितम्बर 2007 का अवतरण
मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज़ सुंदर कमजोर काँपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज़ में
वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से
गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लाँघकर
चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थाई को सँभाले रहता है
जैसा समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था
तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाढस बँधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
(रचनाकाल : 1995)