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"गाँव में चक्का तलाई / अजेय" के अवतरणों में अंतर

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मेरे गाँव की गलियाँ पक्की हो गई हैं।
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गुज़र गई है एक धूल उड़ाती सड़क
 
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गाँव के ऊपर से
 
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लाद ले जाती हैं शहर की मंडी तक
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नकदी फसल के साथ
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मेरे गाँव के सपने
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कच्ची मिट्टी की समतल धुपैली छतों से
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उड़ा ले गया है हेलिकॉप्टर
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पुरसुकून गरमाईश का एक नरम टुकड़ा
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सर्दियों की सारी चहल पहल
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ऊन कातती औरतें
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चिलम लगाते बूढ़े
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‘छोलो’ की मंडलियाँ
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और विष-अमृत खेलते छोटे छोटे बच्चे --
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मेरे गाँव के घर भी पक्के हो गए हैं
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रंगीन टी वी के नकली किरदारों मे जीती
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बनावटी दुक्खों से कुढ़ती 
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ज़िन्दगी उन घरों के
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भीतरी ‘कोज़ी’ हिस्सों मे क़ैद हो गई है
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किस जनम के करम हैं कि
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यहाँ फँस गए हैं हम !
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कैसे निकल भागें पहाड़ों के उस पार ?
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आए दिन फटती  है खोपड़ियाँ जवान लड़कों की *
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कितने दिन हो गए
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पूरे गाँव को मैंने
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एक जगह एक मुद्दे पर इकट्ठा नहीं देखा
  
मिट्टी की छतों से
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भौंचक्का ,
उड़ा ले गया है हेलीकॉप्टर
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भूल गया हूँ गाँव आ कर अपना मक़सद
एक टुकड़ा नरम धूप
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शर्मसार हूँ अपने सपनों पर
सर्दियों की चहल पहल
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मेरे सपनों से बहुत आगे निकल गया है गाँव
ऊन कातती औरतें
+
चिलम लगाते बूढ़े
+
बहुत ज़्यादा तरक़्क़ी हो गई है
`छोलो´ की मंडलियाँ
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मेरे गाँव की गलियाँ पकी हो गई हैं.
और विष-अमृत खेलते बच्चे।
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टीन की तिरछी छतों से फिसल कर
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== ताँदी पुल रेन शेल्टर 11.10.1985 ==
ज़िन्दगी
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सिमेंटेड मकानों के भीतर कोज़ी हिस्सों में सिमट गई है
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रंगीन टी० वी० के
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नकली किरदारों में जीती
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बनावटी दु:खों में कुढ़ती --
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´´कहाँ फँस गए हम!
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कैसे निकल भागे पहाड़ों के उस पार?´´
+
  
आए दिन फटती हैं खोपड़ियाँ जवान लड़को की
+
बहुत दिन हुए मैंने पूरे गाँव को
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एक जगह/एक मुद्दे पर इकट्ठा नहीं देखा।
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गाँव आकर भूल गया हूँ अपना मकसद
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अपने सपनों पर शर्म आती है
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मेरे सपनों से बहुत आगे निकल गया है गाँव
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बहुत ज्यादा तरक्की हो गई है
+
मेरे गाँव की गलियाँ पक्की हो गई हैं।
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09:58, 22 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण



मेरे गाँव की गलियाँ पक्की हो गईं हैं.

गुज़र गई है एक धूल उड़ाती सड़क
गाँव के ऊपर से
खेतों के बीचों बीच
बड़ी बड़ी गाड़ियाँ
लाद ले जातीं हैं शहर की मंडी तक
नकदी फसल के साथ
मेरे गाँव के सपने
छोटी छोटी खुशियाँ – -

कच्ची मिट्टी की समतल धुपैली छतों से
उड़ा ले गया है हेलिकॉप्टर
पुरसुकून गरमाईश का एक नरम टुकड़ा
उड़ा ले गया है
सर्दियों की सारी चहल पहल
ऊन कातती औरतें
चिलम लगाते बूढ़े
‘छोलो’ की मंडलियाँ
और विष-अमृत खेलते छोटे छोटे बच्चे --


मेरे गाँव के घर भी पक्के हो गए हैं
रंगीन टी वी के नकली किरदारों मे जीती
बनावटी दुक्खों से कुढ़ती
ज़िन्दगी उन घरों के
भीतरी ‘कोज़ी’ हिस्सों मे क़ैद हो गई है
किस जनम के करम हैं कि
यहाँ फँस गए हैं हम !
कैसे निकल भागें पहाड़ों के उस पार ?

आए दिन फटती है खोपड़ियाँ जवान लड़कों की *
कितने दिन हो गए
पूरे गाँव को मैंने
एक जगह एक मुद्दे पर इकट्ठा नहीं देखा

भौंचक्का ,
भूल गया हूँ गाँव आ कर अपना मक़सद
शर्मसार हूँ अपने सपनों पर
मेरे सपनों से बहुत आगे निकल गया है गाँव

बहुत ज़्यादा तरक़्क़ी हो गई है
मेरे गाँव की गलियाँ पकी हो गई हैं.



== ताँदी पुल रेन शेल्टर 11.10.1985 ==