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तेरी बातें ही सुनाने आये / फ़राज़
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06:35, 24 अप्रैल 2011
क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी
लोग क्यूँ जश्न मनाने आये
आ ना जाए कहीं फिर लौट के जाँ
मेरी मय्यत वो सझाने आये
सो रहो मौत के पहलू में "फ़राज़"
नींद किस वक़्त न जाने आये
</poem>
Bohra.sankalp
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