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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 23" के अवतरणों में अंतर

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'''पद 221 से 230 तक'''
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भरोसो और आइहै उर ताके।
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कै कहुँ लहै जो रामहि-सो साहिब, कै अपनो बल जाके।।
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कै कलिकाल कराल न सूझत, मोह-मार-मद छाके।
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कै सुनि स्वामि-सुभाउ न रह्यो चित जो हित सब अंग थाके।।
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हौं जानत भलिभाँति अपनपो, प्रभु-सो सुन्यो न साके।
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उपल, भील,खग, मृग, रजनीचर, भले भये करतब काके।।
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मोको भलो राम-नाम सुरतरू-सो रामप्रसाद कृपालु कृपाके।
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तुलसी सुखी निसोच राज ज्यों बालक माय-बबाके।।
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19:44, 28 अप्रैल 2011 का अवतरण