भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रकाश की दुनिया / किरण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=गोल-गोल घूमती एक नाव / किरण अग्रवाल
 
|संग्रह=गोल-गोल घूमती एक नाव / किरण अग्रवाल
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita‎}}
 
<poem>
 
<poem>
 
मेरे सामने है प्रकाश की दुनिया
 
मेरे सामने है प्रकाश की दुनिया

14:06, 14 मई 2011 के समय का अवतरण

मेरे सामने है प्रकाश की दुनिया
वहाँ अंधकार नहीं है
वहाँ दूख नहीं है
वहाँ आनन्द है और बस आनन्द है
मेरे सामने खुला है द्वार प्रकाश की दुनिया का
मैं जाती हूँ वहाँ
लेकिन लौट-लौट कर वापिस आती हूँ
अपनी इसी दुनिया में
मैं अकेले नहीं रहना चाहती वहाँ
मैं अपने परिवार के साथ वहाँ जाना चाहती हूँ
और सारी दुनिया है मेरा परिवार
मैं अपनी दुनिया के साथ
प्रविष्ट होना चाहती हूँ प्रकाश की दुनिया में