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"आजकल / समीर बरन नन्दी" के अवतरणों में अंतर

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01:26, 17 मई 2011 के समय का अवतरण

मेरे कोठार में, दन्त में विष भरे
हमले की तैयारी में पूँछ पर उठकर लहरा रहा है
पकड़ने जाओ तो डसने के लिए फुफकारता है ।

कुछ कहना चाहूँ तो, सुना है उसे सुनाई नहीं देता ।

नींद में उसकी फुसफुसाहट सुनता हूँ
देखता हूँ -- हरा-नीला वर्ण उसका चौड़ा-फन

हाथ जहाँ डालता हूँ --
काग़ज़ की तरह निकल आता है वो ।